संपत्सु महतां चित्तं भवत्युत्पलकोमलम् ॥ आपत्सु तु महाशैलशिला सङ्घातकर्कशम् ॥
संपत्कालीं मर्दवे सज्जनांचीं होतीं चित्तें जाति पंकेरुहांचीं ॥ आपत्कालीं शैलही आदळॊ कां धाकेना जो गजवी शौर्यडंका ॥