संपत्सु महतां
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संपत्सु महतां चित्तं भवत्युत्पलकोमलम् ॥ |
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संपत्कालीं मर्दवे सज्जनांचीं होतीं चित्तें जाति पंकेरुहांचीं ॥ |
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संपत्सु महतां चित्तं भवत्युत्पलकोमलम् ॥ |
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संपत्कालीं मर्दवे सज्जनांचीं होतीं चित्तें जाति पंकेरुहांचीं ॥ |