तृष्णां छिन्धि
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तृष्णां छिन्धि भज क्षमां जहि मदं पापे रतिं मा कृथाः |
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तृष्णेतें निपटीं क्षमेस जवटी गर्वादिकातें पिटीं |
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तृष्णां छिन्धि भज क्षमां जहि मदं पापे रतिं मा कृथाः |
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तृष्णेतें निपटीं क्षमेस जवटी गर्वादिकातें पिटीं |