८. १. १ सर्वस्य द्वे |
८. १. २ तस्य परमाम्रेडितम् |
८. १. ३ अनुदात्तं च |
८. १. ४ नित्यवीप्सयोः |
८. १. ५ परेर्वर्जने |
८. १. ६ प्रसमुपोदः पादपूरणे |
८. १. ७ उपर्यध्यधसः सामीप्ये |
८. १. ८ वाक्यादेरामन्त्रितस्यासूयासम्मतिकोपकुत्सनभर्त्सनेषु |
८. १. ९ एकं बहुव्रीहिवत् |
८. १. १० आबाधे च |
८. १. ११ कर्मधारयवत् उत्तरेषु |
८. १. १२ प्रकारे गुणवचनस्य |
८. १. १३ अकृच्छ्रे प्रियसुखयोरन्यतरस्याम् |
८. १. १४ यथास्वे यथायथम् |
८. १. १५ द्वन्द्वं रहस्यमर्यादावचनव्युत्क्रमण-
यज्ञपात्रप्रयोगाभिव्यक्तिषु |
८. १. १६ पदस्य |
८. १. १७ पदात् |
८. १. १८ अनुदात्तं सर्वमपादादौ |
८. १. १९ आमन्त्रितस्य च |
८. १. २० युष्मदस्मदोः षष्ठीचतुर्थीद्वितीयास्थयोर्वान्नावौ |
८. १. २१ बहुवचने वस्नसौ |
८. १. २२ तेमयावेकवचनस्य |
८. १. २३ त्वामौ द्वितीयायाः |
८. १. २४ न चवाहाहैवयुक्ते |
८. १. २५ पश्यार्थैश्चानालोचने |
८. १. २६ सपूर्वायाः प्रथमाया विभाषा |
८. १. २७ तिङो गोत्रादीनि कुत्सनाभीक्ष्ण्ययोः |
८. १. २८ तिङ्ङतिङः |
८. १. २९ न लुट् |
८. १. ३० निपातैर्यद्यदिहन्तकुविन्नेच्चेच्चण्कच्चिद्यत्रयुक्तम् |
८. १. ३१ नह प्रत्यारम्भे |
८. १. ३२ सत्यं प्रश्ने |
८. १. ३३ अङ्गाप्रातिलोम्ये |
८. १. ३४ हि च |
८. १. ३५ छन्दस्यनेकमपि साकाङ्क्षम् |
८. १. ३६ यावद्यथाभ्याम् |
८. १. ३७ पूजायां नानन्तरम् |
८. १. ३८ उपसर्गव्यपेतं च |
८. १. ३९ तुपश्यपश्यताहैः पूजायाम् |
८. १. ४० अहो च |
८. १. ४१ शेषे विभाषा |
८. १. ४२ पुरा च परीप्सायाम् |
८. १. ४३ नन्वित्यनुज्ञैषणायाम् |
८. १. ४४ किं क्रियाप्रश्नेऽनुपसर्गमप्रतिषिद्धम् |
८. १. ४५ लोपे विभाषा |
८. १. ४६ एहिमन्ये प्रहासे लृट् |
८. १. ४७ जात्वपूर्वम् |
८. १. ४८ किम्वृत्तं च चिदुत्तरम् |
८. १. ४९ आहो उताहो चानन्तरम् |
८. १. ५० शेषे विभाषा |
८. १. ५१ गत्यर्थलोटा लृण्न चेत् कारकं सर्वान्यत् |
८. १. ५२ लोट् च |
८. १. ५३ विभाषितं सोपसर्गमनुत्तमम् |
८. १. ५४ हन्त च |
८. १. ५५ आम एकान्तरमामन्त्रितमनन्तिके |
८. १. ५६ यद्धितुपरं छन्दसि |
८. १. ५७ चनचिदिवगोत्रादितद्धिताम्रेडितेष्वगतेः |
८. १. ५८ चादिषु च |
८. १. ५९ चवायोगे प्रथमा |
८. १. ६० हेति क्षियायाम् |
८. १. ६१ अहेति विनियोगे च |
८. १. ६२ चाहलोप एवेत्यवधारणम् |
८. १. ६३ चादिलोपे विभाषा |
८. १. ६४ वैवावेति च च्छन्दसि |
८. १. ६५ एकान्याभ्यां समर्थाभ्याम् |
८. १. ६६ यद्वृत्तान्नित्यं |
८. १. ६७ पूजनात् पूजितमनुदात्तम् (काष्ठादिभ्यः)|
८. १. ६८ सगतिरपि तिङ् |
८. १. ६९ कुत्सने च सुप्यगोत्रादौ |
८. १. ७० गतिर्गतौ |
८. १. ७१ तिङि चोदात्तवति |
८. १. ७२ आमन्त्रितं पूर्वम् अविद्यमानवत् |
८. १. ७३ नामन्त्रिते समानाधिकरणे (सामान्यवचनम्)|
८. १. ७४ (सामान्यवचनं)विभाषितं विशेषवचने
(बहुवचनम्)|

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