६. ३. ७१ श्येनतिलस्य पाते ञे |
६. ३. ७२ रात्रेः कृति विभाषा |
६. ३. ७३ नलोपः नञः |
६. ३. ७४ तस्मान्नुडचि |
६. ३. ७५ नभ्राण्नपान्नवेदानासत्यानमुचिनकुलनख-
नपुंसकनक्षत्रनक्रनाकेषु प्रकृत्या |
६. ३. ७६ एकादिश्चैकस्य चादुक् |
६. ३. ७७ नगोऽप्राणिष्वन्यतरस्याम् |
६. ३. ७८ सहस्य सः संज्ञायाम् |
६. ३. ७९ ग्रन्थान्ताधिके च |
६. ३. ८० द्वितीये चानुपाख्ये |
६. ३. ८१ अव्ययीभावे चाकाले |
६. ३. ८२ वोपसर्जनस्य |
६. ३. ८३ प्रकृत्याऽऽशिष्यगोवत्सहलेषु |
६. ३. ८४ समानस्य छन्दस्यमूर्धप्रभृत्युदर्केषु |
६. ३. ८५ ज्योतिर्जनपदरात्रिनाभिनामगोत्ररूपस्थानवर्ण-
वयोवचनबन्धुषु |
६. ३. ८६ चरणे ब्रह्मचारिणि |
६. ३. ८७ तीर्थे ये |
६. ३. ८८ विभाषोदरे |
६. ३. ८९ दृग्दृशवतुषु |
६. ३. ९० इदङ्किमोरीश्की |
६. ३. ९१ आ सर्वनाम्नः |
६. ३. ९२ विष्वग्देवयोश्च टेरद्र्यञ्चतौ वप्रत्यये |
६. ३. ९३ समः समि |
६. ३. ९४ तिरसस्तिर्यलोपे |
६. ३. ९५ सहस्य सध्रिः |
६. ३. ९६ सध मादस्थयोश्छन्दसि |
६. ३. ९७ द्व्यन्तरुपसर्गेभ्योऽप ईत् |
६. ३. ९८ ऊदनोर्देशे |
६. ३. ९९ अषष्ठ्यतृतीयास्थस्यान्यस्य
दुगाशिराशाऽऽस्थाऽऽस्थितोत्सुकोतिकारकरागच्छेषु |
६. ३. १०० अर्थे विभाषा |
६. ३. १०१ कोः कत् तत्पुरुषेऽचि |
६. ३. १०२ रथवदयोश्च |
६. ३. १०३ तृणे च जातौ |
६. ३. १०४ का पथ्यक्षयोः |
६. ३. १०५ ईषदर्थे |
६. ३. १०६ विभाषा पुरुषे |
६. ३. १०७ कवं चोष्णे |
६. ३. १०८ पथि च च्छन्दसि |
६. ३. १०९ पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम् |
६. ३. ११० संख्याविसायपूर्वस्याह्नस्याहन्नन्यतरस्यां ङौ |
६. ३. १११ ढ्रलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽणः |
६. ३. ११२ सहिवहोरोदवर्णस्य |
६. ३. ११३ साढ्यै साढ्वा साढेति निगमे |
६. ३. ११४ संहितायाम् |
६. ३. ११५ कर्णे लक्षणस्याविष्टाष्टपञ्चमणिभिन्न-
छिन्नछिद्रस्रुवस्वस्तिकस्य |
६. ३. ११६ नहिवृतिवृषिव्यधिरुचिसहितनिषु क्वौ |
६. ३. ११७ वनगिर्योः संज्ञायां कोटरकिंशुलकादीनाम् |
६. ३. ११८ वले |
६. ३. ११९ मतौ बह्वचोऽनजिरादीनाम् |
६. ३. १२० शरादीनां च |
६. ३. १२१ इकः वहे अपीलोः |
६. ३. १२२ उपसर्गस्य घञ्यमनुष्ये बहुलम् |
६. ३. १२३ इकः काशे |
६. ३. १२४ दस्ति |
६. ३. १२५ अष्टनः संज्ञायाम् |
६. ३. १२६ छन्दसि च |
६. ३. १२७ चितेः कपि |
६. ३. १२८ विश्वस्य वसुराटोः |
६. ३. १२९ नरे संज्ञायाम् |
६. ३. १३० मित्रे चर्षौ |
६. ३. १३१ मन्त्रे सोमाश्वेन्द्रियविश्वदेव्यस्य मतौ |
६. ३. १३२ ओषधेश्च विभक्तावप्रथमायाम् |
६. ३. १३३ ऋचि तुनुघमक्षुतङ्कुत्रोरुष्याणाम् |
६. ३. १३४ इकः सुञि |
६. ३. १३५ द्व्यचोऽतस्तिङः |
६. ३. १३६ निपातस्य च |
६. ३. १३७ अन्येषामपि दृश्यते |
६. ३. १३८ चौ |
६. ३. १३९ सम्प्रसारणस्य |

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