६. २. १०१ न हास्तिनफलकमार्देयाः |
६. २. १०२ कुसूलकूपकुम्भशालं बिले |
६. २. १०३ दिक्शब्दा ग्रामजनपदाख्यानचानराटेषु |
६. २. १०४ आचार्योपसर्जनश्चान्तेवासिनि |
६. २. १०५ उत्तरपदवृद्धौ सर्वं च |
६. २. १०६ बहुव्रीहौ विश्वं संज्ञयाम् |
६. २. १०७ उदराश्वेषुषु |
६. २. १०८ क्षेपे |
६. २. १०९ नदी बन्धुनि |
६. २. ११० निष्ठोपसर्गपूर्वमन्यतरस्याम् |
६. २. १११ उत्तरपदादिः |
६. २. ११२ कर्णो वर्णलक्षणात् |
६. २. ११३ संज्ञौपम्ययोश्च |
६. २. ११४ कण्ठपृष्ठग्रीवाजंघं च |
६. २. ११५ शृङ्गमवस्थायां च |
६. २. ११६ नञो जरमरमित्रमृताः |
६. २. ११७ सोर्मनसी अलोमोषसी |
६. २. ११८ क्रत्वादयश्च |
६. २. ११९ आद्युदात्तं द्व्यच् छन्दसि |
६. २. १२० वीरवीर्यौ च |
६. २. १२१ कूलतीरतूलमूलशालाऽक्षसममव्ययीभावे |
६. २. १२२ कंसमन्थशूर्पपाय्यकाण्डं द्विगौ |
६. २. १२३ तत्पुरुषे शालायां नपुंसके |
६. २. १२४ कन्था च |
६. २. १२५ आदिश्चिहणादीनाम् |
६. २. १२६ चेलखेटकटुककाण्डं गर्हायाम् |
६. २. १२७ चीरमुपमानम् |
६. २. १२८ पललसूपशाकं मिश्रे |
६. २. १२९ कूलसूदस्थलकर्षाः संज्ञायाम् |
६. २. १३० अकर्मधारये राज्यम् |
६. २. १३१ वर्ग्यादयश्च |
६. २. १३२ पुत्रः पुंभ्यः |
६. २. १३३ नाचार्यराजर्त्विक्संयुक्तज्ञात्याख्येभ्यः |
६. २. १३४ चूर्णादीन्यप्राणिषष्ठ्याः |
६. २. १३५ षट् च काण्डादीनि |
६. २. १३६ कुण्डं वनम् |
६. २. १३७ प्रकृत्या भगालम् |
६. २. १३८ शितेर्नित्याबह्वज्बहुव्रीहावभसत् |
६. २. १३९ गतिकारकोपपदात् कृत् |
६. २. १४० उभे वनस्पत्यादिषु युगपत् |
६. २. १४१ देवताद्वंद्वे च |
६. २. १४२ नोत्तरपदेऽनुदात्तादावपृथिवीरुद्रपूषमन्थिषु |
६. २. १४३ अन्तः |
६. २. १४४ थाथघञ्क्ताजबित्रकाणाम् |
६. २. १४५ सूपमानात् क्तः |
६. २. १४६ संज्ञायामनाचितादीनाम् |
६. २. १४७ प्रवृद्धादीनां च |
६. २. १४८ कारकाद्दत्तश्रुतयोरेवाशिषि |
६. २. १४९ इत्थम्भूतेन कृतमिति च |
६. २. १५० अनो भावकर्मवचनः |
६. २. १५१ मन्क्तिन्व्याख्यानशयनासनस्थानयाजकादिक्रीताः |
६. २. १५२ सप्तम्याः पुण्यम् |
६. २. १५३ ऊनार्थकलहं तृतीयायाः |
६. २. १५४ मिश्रं चानुपसर्गमसंधौ |
६. २. १५५ नञो गुणप्रतिषेधे सम्पाद्यर्हहितालमर्थास्तद्धिताः |
६. २. १५६ ययतोश्चातदर्थे |
६. २. १५७ अच्कावशक्तौ |
६. २. १५८ आक्रोशे च |
६. २. १५९ संज्ञायाम् |
६. २. १६० कृत्योकेष्णुच्चार्वादयश्च |
६. २. १६१ विभाषा तृन्नन्नतीक्ष्णशुचिषु |
६. २. १६२ बहुव्रीहाविदमेतत्तद्भ्यः प्रथमपूरणयोः क्रियागणने |
६. २. १६३ संख्यायाः स्तनः |
६. २. १६४ विभाषा छन्दसि |
६. २. १६५ संज्ञायां मित्राजिनयोः |
६. २. १६६ व्यवायिनोऽन्तरम् |
६. २. १६७ मुखं स्वाङ्गम् |
६. २. १६८ नाव्ययदिक्शब्दगोमहत्स्थूलमुष्टिपृथुवत्सेभ्यः |
६. २. १६९ निष्ठोपमानादन्यतरस्याम् |
६. २. १७० जातिकालसुखादिभ्योऽनाच्छादनात्
क्तोऽकृतमितप्रतिपन्नाः |
६. २. १७१ वा जाते |
६. २. १७२ नञ्सुभ्याम् |
६. २. १७३ कपि पूर्वम् |
६. २. १७४ ह्रस्वान्तेऽन्त्यात् पूर्वम् |
६. २. १७५ बहोर्नञ्वदुत्तरपदभूम्नि |
६. २. १७६ न गुणादयोऽवयवाः |
६. २. १७७ उपसर्गात् स्वाङ्गं ध्रुवमपर्शु |
६. २. १७८ वनं समासे |
६. २. १७९ अन्तः |
६. २. १८० अन्तश्च |
६. २. १८१ न निविभ्याम् |
६. २. १८२ परेरभितोभाविमण्डलम् |
६. २. १८३ प्रादस्वाङ्गं संज्ञायाम् |
६. २. १८४ निरुदकादीनि च |
६. २. १८५ अभेर्मुखम् |
६. २. १८६ अपाच्च |
६. २. १८७ स्फिगपूतवीणाऽञ्जोऽध्वकुक्षिसीरनामनाम च |
६. २. १८८ अधेरुपरिस्थम् |
६. २. १८९ अनोरप्रधानकनीयसी |
६. २. १९० पुरुषश्चान्वादिष्टः |
६. २. १९१ अतेरकृत्पदे |
६. २. १९२ नेरनिधाने |
६. २. १९३ प्रतेरंश्वादयस्तत्पुरुषे |
६. २. १९४ उपाद् द्व्यजजिनमगौरादयः |
६. २. १९५ सोरवक्षेपणे |
६. २. १९६ विभाषोत्पुच्छे |
६. २. १९७ द्वित्रिभ्यां पाद्दन्मूर्धसु बहुव्रीहौ |
६. २. १९८ सक्थं चाक्रान्तात् |
६. २. १९९ परादिश्छन्दसि बहुलम् |

Hits: 212
X

Right Click

No right click