६. १. १६१ अनुदात्तस्य च यत्रोदात्तलोपः |
६. १. १६२ धातोः |
६. १. १६३ चितः |
६. १. १६४ तद्धितस्य |
६. १. १६५ कितः |
६. १. १६६ तिसृभ्यो जसः |
६. १. १६७ चतुरः शसि |
६. १. १६८ सावेकाचस्तृतीयाऽऽदिविभक्तिः |
६. १. १६९ अन्तोदत्तादुत्तरपदादन्यतरस्यामनित्यसमासे |
६. १. १७० अञ्चेश्छन्दस्यसर्वनामस्थानम् |
६. १. १७१ ऊडिदम्पदाद्यप्पुम्रैद्युभ्यः |
६. १. १७२ अष्टनो दीर्घात् |
६. १. १७३ शतुरनुमो नद्यजादी |
६. १. १७४ उदात्तयणो हल्पूर्वात् |
६. १. १७५ नोङ्धात्वोः |
६. १. १७६ ह्रस्वनुड्भ्यां मतुप् |
६. १. १७७ नामन्यतरस्याम् |
६. १. १७८ ङ्याश्छन्दसि बहुलम् |
६. १. १७९ षट्त्रिचतुर्भ्यो हलादिः |
६. १. १८० झल्युपोत्तमम् |
६. १. १८१ विभाषा भाषायाम् |
६. १. १८२ न गोश्वन्त्साववर्णराडङ्क्रुङ्कृद्भ्यः |
६. १. १८३ दिवो झल् |
६. १. १८४ नृ चान्यतरस्याम् |
६. १. १८५ तित्स्वरितम् |
६. १. १८६ तास्यनुदात्तेन्ङिददुपदेशाल्लसार्वधातुकम्-
अनुदात्तमहन्विङोः |
६. १. १८७ आदिः सिचोऽन्यतरस्याम् |
६. १. १८८ स्वपादिर्हिंसामच्यनिटि |
६. १. १८९ अभ्यस्तानामादिः |
६. १. १९० अनुदात्ते च |
६. १. १९१ सर्वस्य सुपि |
६. १. १९२ भीह्रीभृहुमदजनधनदरिद्राजागरां प्रत्ययात् पूर्वम्
पिति |
६. १. १९३ लिति |
६. १. १९४ आदिर्णमुल्यन्यतरस्याम् |
६. १. १९५ अचः कर्तृयकि |
६. १. १९६ थलि च सेटीडन्तो वा |
६. १. १९७ ञ्णित्यादिर्नित्यम् |
६. १. १९८ आमन्त्रितस्य च |
६. १. १९९ पथिमथोः सर्वनामस्थाने |
६. १. २०० अन्तश्च तवै युगपत् |
६. १. २०१ क्षयो निवासे |
६. १. २०२ जयः करणम् |
६. १. २०३ वृषादीनां च |
६. १. २०४ संज्ञायामुपमानम् |
६. १. २०५ निष्ठा च द्व्यजनात् |
६. १. २०६ शुष्कधृष्टौ |
६. १. २०७ आशितः कर्ता |
६. १. २०८ रिक्ते विभाषा |
६. १. २०९ जुष्टार्पिते च छन्दसि |
६. १. २१० नित्यं मन्त्रे |
६. १. २११ युष्मदस्मदोर्ङसि |
६. १. २१२ ङयि च |
६. १. २१३ यतोऽनावः |
६. १. २१४ ईडवन्दवृशंसदुहां ण्यतः |
६. १. २१५ विभाषा वेण्विन्धानयोः |
६. १. २१६ त्यागरागहासकुहश्वठक्रथानाम् |
६. १. २१७ उपोत्तमं रिति |
६. १. २१८ चङ्यन्यतरस्याम् |
६. १. २१९ मतोः पूर्वमात् संज्ञायां स्त्रियाम् |
६. १. २२० अन्तोऽवत्याः |
६. १. २२१ ईवत्याः |
६. १. २२२ चौ |
६. १. २२३ समासस्य |

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