५. ४. ८१ अन्ववतप्ताद्रहसः |
५. ४. ८२ प्रतेरुरसः सप्तमीस्थात् |
५. ४. ८३ अनुगवमायामे |
५. ४. ८४ द्विस्तावा त्रिस्तावा वेदिः |
५. ४. ८५ उपसर्गादध्वनः |
५. ४. ८६ तत्पुरुषस्याङ्गुलेः संख्याऽव्ययादेः |
५. ४. ८७ अहस्सर्वैकदेशसंख्यातपुण्याच्च रात्रेः |
५. ४. ८८ अह्नोऽह्न एतेभ्यः |
५. ४. ८९ न संख्याऽऽदेः समाहारे |
५. ४. ९० उत्तमैकाभ्यां च |
५. ४. ९१ राजाऽहस्सखिभ्यष्टच् |
५. ४. ९२ गोरतद्धितलुकि |
५. ४. ९३ अग्राख्यायामुरसः |
५. ४. ९४ अनोऽश्मायस्सरसाम् जातिसंज्ञयोः |
५. ४. ९५ ग्रामकौटाभ्यां च तक्ष्णः |
५. ४. ९६ अतेः शुनः |
५. ४. ९७ उपमानादप्राणिषु |
५. ४. ९८ उत्तरमृगपूर्वाच्च सक्थ्नः |
५. ४. ९९ नावो द्विगोः |
५. ४. १०० अर्धाच्च |
५. ४. १०१ खार्याः प्राचाम् |
५. ४. १०२ द्वित्रिभ्यामञ्जलेः |
५. ४. १०३ अनसन्तान्नपुंसकाच्छन्दसि |
५. ४. १०४ ब्रह्मणो जानपदाख्यायाम् |
५. ४. १०५ कुमहद्भ्यामन्यतरस्याम् |
५. ४. १०६ द्वंद्वाच्चुदषहान्तात् समाहारे |
५. ४. १०७ अव्ययीभावे शरत्प्रभृतिभ्यः |
५. ४. १०८ अनश्च |
५. ४. १०९ नपुंसकादन्यतरस्याम् |
५. ४. ११० नदीपौर्णमास्याग्रहायणीभ्यः |
५. ४. १११ झयः |
५. ४. ११२ गिरेश्च सेनकस्य |
५. ४. ११३ बहुव्रीहौ सक्थ्यक्ष्णोः स्वाङ्गात् षच् |
५. ४. ११४ अङ्गुलेर्दारुणि |
५. ४. ११५ द्वित्रिभ्यां ष मूर्ध्नः |
५. ४. ११६ अप् पूरणीप्रमाण्योः |
५. ४. ११७ अन्तर्बहिर्भ्यां च लोम्नः |
५. ४. ११८ अञ्नासिकायाः संज्ञायां नसं चास्थूलात् |
५. ४. ११९ उपसर्गाच्च |
५. ४. १२० सुप्रातसुश्वसुदिवशारिकुक्षचतुरश्रैणीपदाजपद-
प्रोष्ठपदाः |
५. ४. १२१ नञ्दुःसुभ्यो हलिसक्थ्योरन्यतरस्याम् |
५. ४. १२२ नित्यमसिच् प्रजामेधयोः |
५. ४. १२३ बहुप्रजाश्छन्दसि |
५. ४. १२४ धर्मादनिच् केवलात् |
५. ४. १२५ जम्भा सुहरिततृणसोमेभ्यः |
५. ४. १२६ दक्षिणेर्मा लुब्धयोगे |
५. ४. १२७ इच् कर्मव्यतिहारे |
५. ४. १२८ द्विदण्ड्यादिभ्यश्च |
५. ४. १२९ प्रसम्भ्यां जानुनोर्ज्ञुः |
५. ४. १३० ऊर्ध्वाद्विभाषा |
५. ४. १३१ ऊधसोऽनङ् |
५. ४. १३२ धनुषश्च |
५. ४. १३३ वा संज्ञायाम् |
५. ४. १३४ जायाया निङ् |
५. ४. १३५ गन्धस्येदुत्पूतिसुसुरभिभ्यः |
५. ४. १३६ अल्पाख्यायाम् |
५. ४. १३७ उपमानाच्च |
५. ४. १३८ पादस्य लोपोऽहस्त्यादिभ्यः |
५. ४. १३९ कुम्भपदीषु च |
५. ४. १४० संख्यासुपूर्वस्य |
५. ४. १४१ वयसि दन्तस्य दतृ |
५. ४. १४२ छन्दसि च |
५. ४. १४३ स्त्रियां संज्ञायाम् |
५. ४. १४४ विभाषा श्यावारोकाभ्याम् |
५. ४. १४५ अग्रान्तशुद्धशुभ्रवृषवराहेभ्यश्च |
५. ४. १४६ ककुदस्यावस्थायां लोपः |
५. ४. १४७ त्रिककुत् पर्वते |
५. ४. १४८ उद्विभ्यां काकुदस्य |
५. ४. १४९ पूर्णाद्विभाषा |
५. ४. १५० सुहृद्दुर्हृदौ मित्रामित्रयोः |
५. ४. १५१ उरःप्रभृतिभ्यः कप् |
५. ४. १५२ इनः स्त्रियाम् |
५. ४. १५३ नद्यृतश्च |
५. ४. १५४ शेषाद्विभाषा |
५. ४. १५५ न संज्ञायाम् |
५. ४. १५६ ईयसश्च |
५. ४. १५७ वन्दिते भ्रातुः |
५. ४. १५८ ऋतश्छन्दसि |
५. ४. १५९ नाडीतन्त्र्योः स्वाङ्गे |
५. ४. १६० निष्प्रवाणिश्च |

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