५. २. ७१ ब्राह्मणकोष्णिके संज्ञायाम् |
५. २. ७२ शीतोष्णाभ्यां कारिणि |
५. २. ७३ अधिकम् |
५. २. ७४ अनुकाभिकाभीकः कमिता |
५. २. ७५ पार्श्वेनान्विच्छति |
५. २. ७६ अयःशूलदण्डाजिनाभ्यां ठक्ठञौ |
५. २. ७७ तावतिथं ग्रहणमिति लुग्वा |
५. २. ७८ स एषां ग्रामणीः |
५. २. ७९ शृङ्खलमस्य बन्धनं करभे |
५. २. ८० उत्क उन्मनाः |
५. २. ८१ कालप्रयोजनाद्रोगे |
५. २. ८२ तदस्मिन्नन्नं प्राये संज्ञायाम् |
५. २. ८३ कुल्माषादञ् |
५. २. ८४ श्रोत्रियंश्छन्दोऽधीते |
५. २. ८५ श्राद्धमनेन भुक्तमिनिठनौ |
५. २. ८६ पूर्वादिनिः |
५. २. ८७ सपूर्वाच्च |
५. २. ८८ इष्टादिभ्यश्च |
५. २. ८९ छन्दसि परिपन्थिपरिपरिणौ पर्यवस्थातरि |
५. २. ९० अनुपद्यन्वेष्टा |
५. २. ९१ साक्षाद्द्रष्टरि संज्ञायाम् |
५. २. ९२ क्षेत्रियच् परक्षेत्रे चिकित्स्यः |
५. २. ९३
इन्द्रियमिन्द्रलिंगमिन्द्रदृष्टमिन्द्रसृष्टमिन्द्रजुष्टम्-
इन्द्रदत्तमिति वा |
५. २. ९४ तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप् |
५. २. ९५ रसादिभ्यश्च |
५. २. ९६ प्राणिस्थादातो लजन्यतरस्याम् |
५. २. ९७ सिध्मादिभ्यश्च |
५. २. ९८ वत्सांसाभ्यां कामबले |
५. २. ९९ फेनादिलच् च |
५. २. १०० लोमादिपामादिपिच्छादिभ्यः शनेलचः |
५. २. १०१ प्रज्ञाश्रद्धाऽर्चावृत्तिभ्यो णः |
५. २. १०२ तपःसहस्राभ्यां विनीनी |
५. २. १०३ अण् च |
५. २. १०४ सिकताशर्कराभ्यां च |
५. २. १०५ देशे लुबिलचौ च |
५. २. १०६ दन्त उन्नत उरच् |
५. २. १०७ ऊषसुषिमुष्कमधो रः |
५. २. १०८ द्युद्रुभ्यां मः |
५. २. १०९ केशाद्वोऽन्यतरस्याम् |
५. २. ११० गाण्ड्यजगात् संज्ञायाम् |
५. २. १११ काण्डाण्डादीरन्नीरचौ |
५. २. ११२ रजःकृष्यासुतिपरिषदो वलच् |
५. २. ११३ दन्तशिखात् संज्ञायाम् |
५. २. ११४ ज्योत्स्नातमिस्राशृङ्गिणोजस्विन्नूर्जस्वलगोमिन्-
मलिनमलीमसाः |
५. २. ११५ अत इनिठनौ |
५. २. ११६ व्रीह्यादिभ्यश्च |
५. २. ११७ तुन्दादिभ्य इलच् च |
५. २. ११८ एकगोपूर्वाट्ठञ् नित्यम् |
५. २. ११९ शतसहस्रान्ताच्च निष्कात् |
५. २. १२० रूपादाहतप्रशंसयोरप् |
५. २. १२१ अस्मायामेधास्रजो विनिः |
५. २. १२२ बहुलं छन्दसि |
५. २. १२३ ऊर्णाया युस् |
५. २. १२४ वाचो ग्मिनिः |
५. २. १२५ आलजाटचौ बहुभाषिणि |
५. २. १२६ स्वामिन्नैश्वर्ये |
५. २. १२७ अर्शआदिभ्योऽच् |
५. २. १२८ द्वंद्वोपतापगर्ह्यात् प्राणिस्थादिनिः |
५. २. १२९ वातातिसाराभ्यां कुक् च |
५. २. १३० वयसि पूरणात् |
५. २. १३१ सुखादिभ्यश्च |
५. २. १३२ धर्मशीलवर्णान्ताच्च |
५. २. १३३ हस्ताज्जातौ |
५. २. १३४ वर्णाद्ब्रह्मचारिणि |
५. २. १३५ पुष्करादिभ्यो देशे |
५. २. १३६ बलादिभ्यो मतुबन्यतरस्याम् |
५. २. १३७ संज्ञायां मन्माभ्याम् |
५. २. १३८ कंशंभ्यां बभयुस्तितुतयसः |
५. २. १३९ तुन्दिवलिवटेर्भः |
५. २. १४० अहंशुभमोर्युस् |

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