५. २. १ धान्यानां भवने क्षेत्रे खञ् |
५. २. २ व्रीहिशाल्योर्ढक् |
५. २. ३ यवयवकषष्टिकादत् |
५. २. ४ विभाषा तिलमाषोमाभङ्गाऽणुभ्यः |
५. २. ५ सर्वचर्मणः कृतः खखञौ |
५. २. ६ यथामुखसंमुखस्य दर्शनः खः |
५. २. ७ तत्सर्वादेः पथ्यङ्गकर्मपत्रपात्रं व्याप्नोति |
५. २. ८ आप्रपदं प्राप्नोति |
५. २. ९ अनुपदसर्वान्नायानयं बद्धाभक्षयतिनेयेषु |
५. २. १० परोवरपरम्परपुत्रपौत्रमनुभवति |
५. २. ११ अवारपारात्यन्तानुकामं गामी |
५. २. १२ समांसमां विजायते |
५. २. १३ अद्यश्वीनाऽवष्टब्धे |
५. २. १४ आगवीनः |
५. २. १५ अनुग्वलंगामी |
५. २. १६ अध्वनो यत्खौ |
५. २. १७ अभ्यमित्राच्छ च |
५. २. १८ गोष्ठात् खञ् भूतपूर्वे |
५. २. १९ अश्वस्यैकाहगमः |
५. २. २० शालीनकौपीने अधृष्टाकार्ययोः |
५. २. २१ व्रातेन जीवति |
५. २. २२ साप्तपदीनं सख्यम् |
५. २. २३ हैयंगवीनं संज्ञायाम् |
५. २. २४ तस्य पाकमूले पील्वदिकर्णादिभ्यः कुणब्जाहचौ |
५. २. २५ पक्षात्तिः |
५. २. २६ तेन वित्तश्चुञ्चुप्चणपौ |
५. २. २७ विनञ्भ्यां नानाञौ नसह |
५. २. २८ वेः शालच्छङ्कटचौ |
५. २. २९ सम्प्रोदश्च कटच् |
५. २. ३० अवात् कुटारच्च |
५. २. ३१ नते नासिकायाः संज्ञायां टीटञ्नाटज्भ्राटचः |
५. २. ३२ नेर्बिडज्बिरीसचौ |
५. २. ३३ इनच्पिटच्चिकचि च |
५. २. ३४ उपाधिभ्यां त्यकन्नासन्नारूढयोः |
५. २. ३५ कर्मणि घटोऽठच् |
५. २. ३६ तदस्य संजातं तारकाऽऽदिभ्य इतच् |
५. २. ३७ प्रमाणे द्वयसज्दघ्नञ्मात्रचः |
५. २. ३८ पुरुषहस्तिभ्यामण् च |
५. २. ३९ यद्तदेतेभ्यः परिमाणे वतुप् |
५. २. ४० किमिदंभ्यां वो घः |
५. २. ४१ किमः संख्यापरिमाणे डति च |
५. २. ४२ संख्याया अवयवे तयप् |
५. २. ४३ द्वित्रिभ्यां तयस्यायज्वा |
५. २. ४४ उभादुदात्तो नित्यम् |
५. २. ४५ तदस्मिन्नधिकमिति दशान्ताड्डः |
५. २. ४६ शदन्तविंशतेश्च |
५. २. ४७ संख्याया गुणस्य निमाने मयट् |
५. २. ४८ तस्य पूरणे डट् |
५. २. ४९ नान्तादसंख्याऽऽदेर्मट् |
५. २. ५० थट् च च्छन्दसि |
५. २. ५१ षट्कतिकतिपयचतुरां थुक् |
५. २. ५२ बहुपूगगणसंघस्य तिथुक् |
५. २. ५३ वतोरिथुक् |
५. २. ५४ द्वेस्तीयः |
५. २. ५५ त्रेः सम्प्रसारणम् च |
५. २. ५६ विंशत्यादिभ्यस्तमडन्यतरस्याम् |
५. २. ५७ नित्यं शतादिमासार्धमाससंवत्सराच्च |
५. २. ५८ षष्ट्यादेश्चासंख्याऽऽदेः |
५. २. ५९ मतौ च्छः सूक्तसाम्नोः |
५. २. ६० अध्यायानुवाकयोर्लुक् |
५. २. ६१ विमुक्तादिभ्योऽण् |
५. २. ६२ गोषदादिभ्यो वुन् |
५. २. ६३ तत्र कुशलः पथः |
५. २. ६४ आकर्षादिभ्यः कन् |
५. २. ६५ धनहिरण्यात् कामे |
५. २. ६६ स्वाङ्गेभ्यः प्रसिते |
५. २. ६७ उदराट्ठगाद्यूने |
५. २. ६८ सस्येन परिजातः |
५. २. ६९ अंशं हारी |
५. २. ७० तन्त्रादचिरापहृते |

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