५. १. ६६ दण्डादिभ्यः |
५. १. ६७ छन्दसि च |
५. १. ६८ पात्राद्घंश्च |
५. १. ६९ कडङ्गरदक्षिणाच्छ च |
५. १. ७० स्थालीबिलात् |
५. १. ७१ यज्ञर्त्विग्भ्यां घखञौ |
५. १. ७२ पारायणतुरायणचान्द्रायणं वर्तयति |
५. १. ७३ संशयमापन्नः |
५. १. ७४ योजनं गच्छति |
५. १. ७५ पथः ष्कन् |
५. १. ७६ पन्थो ण नित्यम् |
५. १. ७७ उत्तरपथेनाहृतं च |
५. १. ७८ कालात् |
५. १. ७९ तेन निर्वृत्तम् |
५. १. ८० तमधीष्टो भृतो भूतो भावी |
५. १. ८१ मासाद्वयसि यत्खञौ |
५. १. ८२ द्विगोर्यप् |
५. १. ८३ षण्मासाण्ण्यच्च |
५. १. ८४ अवयसि ठंश्च |
५. १. ८५ समायाः खः |
५. १. ८६ द्विगोर्वा |
५. १. ८७ रात्र्यहस्संवत्सराच्च |
५. १. ८८ वर्षाल्लुक् च |
५. १. ८९ चित्तवति नित्यम् |
५. १. ९० षष्टिकाः षष्टिरात्रेण पच्यन्ते |
५. १. ९१ वत्सरान्ताच्छश्छन्दसि |
५. १. ९२ सम्परिपूर्वात् ख च |
५. १. ९३ तेन परिजय्यलभ्यकार्यसुकरम् |
५. १. ९४ तदस्य ब्रह्मचर्यम् |
५. १. ९५ तस्य च दक्षिणा यज्ञाख्येभ्यः |
५. १. ९६ तत्र च दीयते कार्यं भववत् |
५. १. ९७ व्युष्टादिभ्योऽण् |
५. १. ९८ तेन यथाकथाचहस्ताभ्यां णयतौ |
५. १. ९९ सम्पादिनि |
५. १. १०० कर्मवेषाद्यत् |
५. १. १०१ तस्मै प्रभवति संतापादिभ्यः |
५. १. १०२ योगाद्यच्च |
५. १. १०३ कर्मण उकञ् |
५. १. १०४ समयस्तदस्य प्राप्तम् |
५. १. १०५ ऋतोरण् |
५. १. १०६ छन्दसि घस् |
५. १. १०७ कालाद्यत् |
५. १. १०८ प्रकृष्टे ठञ् |
५. १. १०९ प्रयोजनम् |
५. १. ११० विशाखाऽऽषाढादण् मन्थदण्डयोः |
५. १. १११ अनुप्रवचनादिभ्यश्छः |
५. १. ११२ समापनात् सपूर्वपदात् |
५. १. ११३ ऐकागारिकट् चौरे |
५. १. ११४ आकालिकडाद्यन्तवचने |
५. १. ११५ तेन तुल्यं क्रिया चेद्वतिः |
५. १. ११६ तत्र तस्येव |
५. १. ११७ तदर्हम् |
५. १. ११८ उपसर्गाच्छन्दसि धात्वर्थे |
५. १. ११९ तस्य भावस्त्वतलौ |
५. १. १२० आ च त्वात् |
५. १. १२१ न
नञ्पूर्वात्तत्पुरुषादचतुरसंगतलवणवटयुधकतर-
सलसेभ्यः |
५. १. १२२ पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा |
५. १. १२३ वर्णदृढादिभ्यः ष्यञ् च |
५. १. १२४ गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च |
५. १. १२५ स्तेनाद्यन्नलोपश्च |
५. १. १२६ सख्युर्यः |
५. १. १२७ कपिज्ञात्योर्ढक् |
५. १. १२८ पत्यन्तपुरोहितादिभ्यो यक् |
५. १. १२९ प्राणभृज्जातिवयोवचनोद्गात्रादिभ्योऽञ् |
५. १. १३० हायनान्तयुवादिभ्योऽण् |
५. १. १३१ इगन्ताच्च लघुपूर्वात् |
५. १. १३२ योपधाद्गुरूपोत्तमाद्वुञ् |
५. १. १३३ द्वंद्वमनोज्ञादिभ्यश्च |
५. १. १३४ गोत्रचरणाच्श्लाघाऽत्याकारतदवेतेषु |
५. १. १३५ होत्राभ्यश्छः |
५. १. १३६ ब्रह्मणस्त्वः |

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