४. ४. ७३ निकटे वसति |
४. ४. ७४ आवसथात् ष्ठल् |
४. ४. ७५ प्राग्घिताद्यत् |
४. ४. ७६ तद्वहति रथयुगप्रासङ्गम् |
४. ४. ७७ धुरो यड्ढकौ |
४. ४. ७८ खः सर्वधुरात् |
४. ४. ७९ एकधुराल्लुक् च |
४. ४. ८० शकटादण् |
४. ४. ८१ हलसीराट्ठक् |
४. ४. ८२ संज्ञायां जन्याः |
४. ४. ८३ विध्यत्यधनुषा |
४. ४. ८४ धनगणं लब्धा |
४. ४. ८५ अन्नाण्णः |
४. ४. ८६ वशं गतः |
४. ४. ८७ पदमस्मिन् दृश्यम् |
४. ४. ८८ मूलमस्याबर्हि |
४. ४. ८९ संज्ञायां धेनुष्या |
४. ४. ९० गृहपतिना संयुक्ते ञ्यः |
४. ४. ९१ नौवयोधर्मविषमूलमूलसीतातुलाभ्यस्तार्यतुल्यप्राप्य-
वध्यानाम्यसमसमितसम्मितेषु |
४. ४. ९२ धर्मपथ्यर्थन्यायादनपेते |
४. ४. ९३ छन्दसो निर्मिते |
४. ४. ९४ उरसोऽण् च |
४. ४. ९५ हृदयस्य प्रियः |
४. ४. ९६ बन्धने चर्षौ |
४. ४. ९७ मतजनहलात् करणजल्पकर्षेषु |
४. ४. ९८ तत्र साधुः |
४. ४. ९९ प्रतिजनादिभ्यः खञ् |
४. ४. १०० भक्ताण्णः |
४. ४. १०१ परिषदो ण्यः |
४. ४. १०२ कथाऽऽदिभ्यष्ठक् |
४. ४. १०३ गुडादिभ्यष्ठञ् |
४. ४. १०४ पथ्यतिथिवसतिस्वपतेर्ढञ् |
४. ४. १०५ सभाया यः |
४. ४. १०६ ढश्छन्दसि |
४. ४. १०७ समानतीर्थे वासी |
४. ४. १०८ समानोदरे शयित ओ चोदात्तः |
४. ४. १०९ सोदराद्यः |
४. ४. ११० भवे छन्दसि |
४. ४. १११ पाथोनदीभ्यां ड्यण् |
४. ४. ११२ वेशन्तहिमवद्भ्यामण् |
४. ४. ११३ स्रोतसो विभाषा ड्यड्ड्यौ |
४. ४. ११४ सगर्भसयूथसनुताद्यन् |
४. ४. ११५ तुग्राद्घन् |
४. ४. ११६ अग्राद्यत् |
४. ४. ११७ घच्छौ च |
४. ४. ११८ समुद्राभ्राद्घः |
४. ४. ११९ बर्हिषि दत्तम् |
४. ४. १२० दूतस्य भागकर्मणी |
४. ४. १२१ रक्षोयातूनां हननी |
४. ४. १२२ रेवतीजगतीहविष्याभ्यः प्रशस्ये |
४. ४. १२३ असुरस्य स्वम् |
४. ४. १२४ मायायामण् |
४. ४. १२५ तद्वानासामुपधानो मन्त्र इतीष्टकासु लुक् च मतोः |
४. ४. १२६ अश्विमानण् |
४. ४. १२७ वयस्यासु मूर्ध्नो मतुप् |
४. ४. १२८ मत्वर्थे मासतन्वोः |
४ ४. १२९ मधोर्ञ च |
४. ४. १३० ओजसोऽहनि यत्खौ |
४. ४. १३१ वेशोयशआदेर्भगाद्यल् |
४. ४. १३२ ख च |
४. ४. १३३ पूर्वैः कृतमिनियौ च |
४. ४. १३४ अद्भिः संस्कृतम् |
४. ४. १३५ सहस्रेण संमितौ घः |
४. ४. १३६ मतौ च |
४. ४. १३७ सोममर्हति यः |
४. ४. १३८ मये च |
४. ४. १३९ मधोः |
४. ४. १४० वसोः समूहे च |
४. ४. १४१ नक्षत्राद्घः |
४. ४. १४२ सर्वदेवात् तातिल् |
४. ४. १४३ शिवशमरिष्टस्य करे |
४. ४. १४४ भावे च |

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