४. ४. १ प्राग्वहतेष्ठक् |
४. ४. २ तेन दीव्यति खनति जयति जितम् |
४. ४. ३ संस्कृतम् |
४. ४. ४ कुलत्थकोपधादण् |
४. ४. ५ तरति |
४. ४. ६ गोपुच्छाट्ठञ् |
४. ४. ७ नौद्व्यचष्ठन् |
४. ४. ८ चरति |
४. ४. ९ आकर्षात् ष्ठल् |
४. ४. १० पर्पादिभ्यः ष्ठन् |
४. ४. ११ श्वगणाट्ठञ्च |
४. ४. १२ वेतनादिभ्यो जीवति |
४. ४. १३ वस्नक्रयविक्रयाट्ठन् |
४. ४. १४ आयुधाच्छ च |
४. ४. १५ हरत्युत्सङ्गादिभ्यः |
४. ४. १६ भस्त्राऽऽदिभ्यः ष्ठन् |
४. ४. १७ विभाषा विवधवीवधात् |
४. ४. १८ अण् कुटिलिकायाः |
४. ४. १९ निर्वृत्तेऽक्षद्यूतादिभ्यः |
४. ४. २० क्त्रेर्मम् नित्यं |
४. ४. २१ अपमित्ययाचिताभ्यां कक्कनौ |
४. ४. २२ संसृष्टे |
४. ४. २३ चूर्णादिनिः |
४. ४. २४ लवणाल्लुक् |
४. ४. २५ मुद्गादण् |
४. ४. २६ व्यञ्जनैरुपसिक्ते |
४. ४. २७ ओजस्सहोऽम्भसा वर्तते |
४. ४. २८ तत् प्रत्यनुपूर्वमीपलोमकूलम् |
४. ४. २९ परिमुखं च |
४. ४. ३० प्रयच्छति गर्ह्यम् |
४. ४. ३१ कुसीददशैकादशात् ष्ठन्ष्ठचौ |
४. ४. ३२ उञ्छति |
४. ४. ३३ रक्षति |
४. ४. ३४ शब्ददर्दुरं करोति |
४. ४. ३५ पक्षिमत्स्यमृगान् हन्ति |
४. ४. ३६ परिपन्थं च तिष्ठति |
४. ४. ३७ माथोत्तरपदपदव्यनुपदं धावति |
४. ४. ३८ आक्रन्दाट्ठञ्च |
४. ४. ३९ पदोत्तरपदं गृह्णाति |
४. ४. ४० प्रतिकण्ठार्थललामं च |
४. ४. ४१ धर्मं चरति |
४. ४. ४२ प्रतिपथमेति ठंश्च |
४. ४. ४३ समवायान् समवैति |
४. ४. ४४ परिषदो ण्यः |
४. ४. ४५ सेनाया वा |
४. ४. ४६ संज्ञायां ललाटकुक्कुट्यौ पश्यति |
४. ४. ४७ तस्य धर्म्यम् |
४. ४. ४८ अण् महिष्यादिभ्यः |
४. ४. ४९ ऋतोऽञ् |
४. ४. ५० अवक्रयः |
४. ४. ५१ तदस्य पण्यम् |
४. ४. ५२ लवणाट्ठञ् |
४. ४. ५३ किशरादिभ्यः ष्ठन् |
४. ४. ५४ शलालुनोऽन्यतरस्याम् |
४. ४. ५५ शिल्पम् |
४. ४. ५६ मड्डुकझर्झरादणन्यतरस्याम् |
४. ४. ५७ प्रहरणम् |
४. ४. ५८ परश्वधाट्ठञ्च |
४. ४. ५९ शक्तियष्ट्योरीकक् |
४. ४. ६० अस्तिनास्तिदिष्टं मतिः |
४. ४. ६१ शीलम् |
४. ४. ६२ छत्रादिभ्यो णः |
४. ४. ६३ कर्माध्ययने वृत्तम् |
४. ४. ६४ बह्वच्पूर्वपदाट्ठच् |
४. ४. ६५ हितं भक्षाः |
४. ४. ६६ तदस्मै दीयते नियुक्तम् |
४. ४. ६७ श्राणामांसौदनाट्टिठन् |
४. ४. ६८ भक्तादणन्यतरस्याम् |
४. ४. ६९ तत्र नियुक्तः |
४. ४. ७० अगारान्ताट्ठन् |
४. ४. ७१ अध्यायिन्यदेशकालात् |
४. ४. ७२ कठिनान्तप्रस्तारसंस्थानेषु व्यवहरति |

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