४. ३. ८१ हेतुमनुष्येभ्योऽन्यतरस्यां रूप्यः |
४. ३. ८२ मयट् च |
४. ३. ८३ प्रभवति |
४. ३. ८४ विदूराञ्ञ्यः |
४. ३. ८५ तद्गच्छति पथिदूतयोः |
४. ३. ८६ अभिनिष्क्रामति द्वारम् |
४. ३. ८७ अधिकृत्य कृते ग्रन्थे |
४. ३. ८८ शिशुक्रन्दयमसभद्वंद्वेन्द्रजननादिभ्यश्छः |
४. ३. ८९ सोऽस्य निवासः |
४. ३. ९० अभिजनश्च |
४. ३. ९१ आयुधजीविभ्यश्छः पर्वते |
४. ३. ९२ शण्डिकादिभ्यो ञ्यः |
४. ३. ९३ सिन्धुतक्षशिलाऽऽदिभ्योऽणञौ |
४. ३. ९४ तूदीशलातुरवर्मतीकूचवाराड्ढक्छण्ढञ्यकः |
४. ३. ९५ भक्तिः |
४. ३. ९६ अचित्ताददेशकालाट्ठक् |
४. ३. ९७ महाराजाट्ठञ् |
४. ३. ९८ वासुदेवार्जुनाभ्यां वुन् |
४. ३. ९९ गोत्रक्षत्रियाख्येभ्यो बहुलं वुञ् |
४. ३. १०० जनपदिनां जनपदवत् सर्वं जनपदेन समानशब्दानां
बहुवचने |
४. ३. १०१ तेन प्रोक्तम् |
४. ३. १०२ तित्तिरिवरतन्तुखण्डिकोखाच्छण् |
४. ३. १०३ काश्यपकौशिकाभ्यामृषिभ्यां णिनिः |
४. ३. १०४ कलापिवैशम्पायनान्तेवासिभ्यश्च |
४. ३. १०५ पुराणप्रोक्तेषु ब्राह्मणकल्पेषु |
४. ३. १०६ शौनकादिभ्यश्छन्दसि |
४. ३. १०७ कठचरकाल्लुक् |
४. ३. १०८ कलापिनोऽण् |
४. ३. १०९ छगलिनो ढिनुक् |
४. ३. ११० पाराशर्यशिलालिभ्यां भिक्षुनटसूत्रयोः |
४. ३. १११ कर्मन्दकृशाश्वादिनिः |
४. ३. ११२ तेनैकदिक् |
४. ३. ११३ तसिश्च |
४. ३. ११४ उरसो यच्च |
४. ३. ११५ उपज्ञाते |
४. ३. ११६ कृते ग्रन्थे |
४. ३. ११७ संज्ञायाम् |
४. ३. ११८ कुलालादिभ्यो वुञ् |
४. ३. ११९ क्षुद्राभ्रमरवटरपादपादञ् |
४. ३. १२० तस्येदम् |
४. ३. १२१ रथाद्यत् |
४. ३. १२२ पत्त्रपूर्वादञ् |
४. ३. १२३ पत्त्राध्वर्युपरिषदश्च |
४. ३. १२४ हलसीराट्ठक् |
४. ३. १२५ द्वंद्वाद्वुन् वैरमैथुनिकयोः |
४. ३. १२६ गोत्रचरणाद्वुञ् |
४. ३. १२७ संघाङ्कलक्षणेष्वञ्यञिञामण् |
४. ३. १२८ शाकलाद्वा |
४. ३. १२९ छन्दोगौक्थिकयाज्ञिकबह्वृचनटाञ्ञ्यः |
४. ३. १३० न दण्डमाणवान्तेवासिषु |
४. ३. १३१ रैवतिकादिभ्यश्छः |
४. ३. १३२ कौपिञ्जलहास्तिपदादण् |
४. ३. १३३ आथर्वणिकस्येकलोपश्च |
४. ३. १३४ तस्य विकारः |
४. ३. १३५ अवयवे च प्राण्योषधिवृक्षेभ्यः |
४. ३. १३६ बिल्वादिभ्योऽण् |
४. ३. १३७ कोपधाच्च |
४. ३. १३८ त्रपुजतुनोः षुक् |
४. ३. १३९ ओरञ् |
४. ३. १४० अनुदात्तादेश्च |
४. ३. १४१ पलाशादिभ्यो वा |
४. ३. १४२ शम्याष्ट्लञ् |
४. ३. १४३ मयड्वैतयोर्भाषायामभक्ष्याच्छादनयोः |
४. ३. १४४ नित्यं वृद्धशरादिभ्यः |
४. ३. १४५ गोश्च पुरीषे |
४. ३. १४६ पिष्टाच्च |
४. ३. १४७ संज्ञायां कन् |
४. ३. १४८ व्रीहेः पुरोडाशे |
४. ३. १४९ असंज्ञायां तिलयवाभ्याम् |
४. ३. १५० द्व्यचश्छन्दसि |
४. ३. १५१ नोत्वद्वर्ध्रबिल्वात् |
४. ३. १५२ तालादिभ्योऽण् |
४. ३. १५३ जातरूपेभ्यः परिमाणे |
४. ३. १५४ प्राणिरजतादिभ्योऽञ् |
४. ३. १५५ ञितश्च तत्प्रत्ययात् |
४. ३. १५६ क्रीतवत् परिमाणात् |
४. ३. १५७ उष्ट्राद्वुञ् |
४. ३. १५८ उमोर्णयोर्वा |
४. ३. १५९ एण्या ढञ् |
४. ३. १६० गोपयसोर्यत् |
४. ३. १६१ द्रोश्च |
४. ३. १६२ माने वयः |
४. ३. १६३ फले लुक् |
४. ३. १६४ प्लक्षादिभ्योऽण् |
४. ३. १६५ जम्ब्वा वा |
४. ३. १६६ लुप् च |
४. ३. १६७ हरीतक्यादिभ्यश्च |
४. ३. १६८ कंसीयपरशव्ययोर्यञञौ लुक् च |

Hits: 235
X

Right Click

No right click