४. २. १ तेन रक्तं रागात् |
४. २. २ लाक्षारोचना(शकलकर्दमा)ट्ठक् |
४. २. ३ नक्षत्रेण युक्तः कालः |
४. २. ४ लुबविशेषे |
४. २. ५ संज्ञायां श्रवणाश्वत्थाभ्याम् |
४. २. ६ द्वंद्वाच्छः |
४. २. ७ दृष्टं साम |
४. २. ८ कलेर्ढक् |
४. २. ९ वामदेवाड्ड्यड्ड्यौ |
४. २. १० परिवृतो रथः |
४. २. ११ पाण्डुकम्बलादिनिः |
४. २. १२ द्वैपवैयाघ्रादञ् |
४. २. १३ कौमारापूर्ववचने |
४. २. १४ तत्रोद्धृतममत्रेभ्यः |
४. २. १५ स्थण्डिलाच्छयितरि व्रते |
४. २. १६ संस्कृतं भक्षाः |
४. २. १७ शूलोखाद्यत् |
४. २. १८ दध्नष्ठक् |
४. २. १९ उदश्वितोऽन्यतरस्याम् |
४. २. २० क्षीराड्ढञ् |
४. २. २१ साऽस्मिन् पौर्णमासीति (संज्ञायाम्)|
४. २. २२ आग्रहायण्यश्वत्थाट्ठक् |
४. २. २३ विभाषा फाल्गुनीश्रवणाकार्त्तिकीचैत्रीभ्यः |
४. २. २४ साऽस्य देवता |
४. २. २५ कस्येत् |
४. २. २६ शुक्राद्घन् |
४. २. २७ अपोनप्त्रपान्नप्तृभ्यां घः |
४. २. २८ छ च |
४. २. २९ महेन्द्राद्घाणौ च |
४. २. ३० सोमाट्ट्यण् |
४. २. ३१ वाय्वृतुपित्रुषसो यत् |
४. २. ३२ द्यावापृथिवीशुनासीरमरुत्वदग्नीषोमवास्तोष्पति-
गृहमेधाच्छ च |
४. २. ३३ अग्नेर्ढक् |
४. २. ३४ कालेभ्यो भववत् |
४. २. ३५ महाराजप्रोष्ठपदाट्ठञ् |
४. २. ३६ पितृव्यमातुलमातामहपितामहाः |
४. २. ३७ तस्य समूहः |
४. २. ३८ भिक्षाऽऽदिभ्योऽण् |
४. २. ३९ गोत्रोक्षोष्ट्रोरभ्रराजराजन्यराजपुत्रवत्स-
मनुष्याजाद्वुञ् |
४. २. ४० केदाराद्यञ् च |
४. २. ४१ ठञ् कवचिनश्च |
४. २. ४२ ब्राह्मणमाणववाडवाद्यन् |
४. २. ४३ ग्रामजनबन्धुसहायेभ्यः तल् |
४. २. ४४ अनुदात्तादेरञ् |
४. २. ४५ खण्डिकादिभ्यश्च |
४. २. ४६ चरणेभ्यो धर्मवत् |
४. २. ४७ अचित्तहस्तिधेनोष्ठक् |
४. २. ४८ केशाश्वाभ्यां यञ्छावन्यतरस्याम् |
४. २. ४९ पाशादिभ्यो यः |
४. २. ५० खलगोरथात् |
४. २. ५१ इनित्रकट्यचश्च |
४. २. ५२ विषयो देशे |
४. २. ५३ राजन्यादिभ्यो वुञ् |
४. २. ५४ भौरिक्याद्यैषुकार्यादिभ्यो विधल्भक्तलौ |
४. २. ५५ सोऽस्यादिरिति च्छन्दसः प्रगाथेषु |
४. २. ५६ संग्रामे प्रयोजनयोद्धृभ्यः |
४. २. ५७ तदस्यां प्रहरणमिति क्रीडायाम् णः |
४. २. ५८ घञः साऽस्यां क्रियेति ञः |
४. २. ५९ तदधीते तद्वेद |
४. २. ६० क्रतूक्थादिसूत्रान्ताट्ठक् |
४. २. ६१ क्रमादिभ्यो वुन् |
४. २. ६२ अनुब्राह्मणादिनिः |
४. २. ६३ वसन्तादिभ्यष्ठक् |
४. २. ६४ प्रोक्ताल्लुक् |
४. २. ६५ सूत्राच्च कोपधात् |
४. २. ६६ छन्दोब्राह्मणानि च तद्विषयाणि |
४. २. ६७ तदस्मिन्नस्तीति देशे तन्नाम्नि |
४. २. ६८ तेन निर्वृत्तम् |
४. २. ६९ तस्य निवासः |
४. २. ७० अदूरभवश्च |
४. २. ७१ ओरञ् |
४. २. ७२ मतोश्च बह्वजङ्गात् |
४. २. ७३ बह्वचः कूपेषु |
४. २. ७४ उदक् च विपाशः |
४. २. ७५ संकलादिभ्यश्च |

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