४. १. १०१ यञिञोश्च |
४. १. १०२ शरद्वच्छुनकदर्भाद्भृगुवत्साग्रायणेषु |
४. १. १०३ द्रोणपर्वतजीवन्तादन्यतरयाम् |
४. १. १०४ अनृष्यानन्तर्ये बिदादिभ्योऽञ् |
४. १. १०५ गर्गादिभ्यो यञ् |
४. १. १०६ मधुबभ्र्वोर्ब्राह्मणकौशिकयोः |
४. १. १०७ कपिबोधादाङ्गिरसे |
४. १. १०८ वतण्डाच्च |
४. १. १०९ लुक् स्त्रियाम् |
४. १. ११० अश्वादिभ्यः फञ् |
४. १. १११ भर्गात् त्रैगर्ते |
४. १. ११२ शिवादिभ्योऽण् |
४. १. ११३ अवृद्धाभ्यो नदीमानुषीभ्यस्तन्नामिकाभ्यः |
४. १. ११४ ऋष्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यश्च |
४. १. ११५ मातुरुत् संख्यासम्भद्रपूर्वायाः |
४. १. ११६ कन्यायाः कनीन च |
४. १. ११७ विकर्णशुङ्गच्छगलाद्वत्सभरद्वाजात्रिषु |
४. १. ११८ पीलाया वा |
४. १. ११९ ढक् च मण्डूकात् |
४. १. १२० स्त्रीभ्यो ढक् |
४. १. १२१ द्व्यचः |
४. १. १२२ इतश्चानिञः |
४. १. १२३ शुभ्रादिभ्यश्च |
४. १. १२४ विकर्णकुषीतकात् काश्यपे |
४. १. १२५ भ्रुवो वुक् च |
४. १. १२६ कल्याण्यादीनामिनङ् |
४. १. १२७ कुलटाया वा |
४. १. १२८ चटकाया ऐरक् |
४. १. १२९ गोधाया ढ्रक् |
४. १. १३० आरगुदीचाम् |
४. १. १३१ क्षुद्राभ्यो वा |
४. १. १३२ पितृष्वसुश्छण् |
४. १. १३३ ढकि लोपः |
४. १. १३४ मातृष्वसुश्च |
४. १. १३५ चतुष्पाद्भ्यो ढञ् |
४. १. १३६ गृष्ट्यादिभ्यश्च |
४. १. १३७ राजश्वशुराद्यत् |
४. १. १३८ क्षत्राद्घः |
४. १. १३९ कुलात् खः |
४. १. १४० अपूर्वपदादन्यतरस्यां यड्ढकञौ |
४. १. १४१ महाकुलादञ्खञौ |
४. १. १४२ दुष्कुलाड्ढक् |
४. १. १४३ स्वसुश्छः |
४. १. १४४ भ्रातुर्व्यच्च |
४. १. १४५ व्यन् सपत्ने |
४. १. १४६ रेवत्यादिभ्यष्ठक् |
४. १. १४७ गोत्रस्त्रियाः कुत्सने ण च |
४. १. १४८ वृद्धाट्ठक् सौवीरेषु बहुलम् |
४. १. १४९ फेश्छ च |
४. १. १५० फाण्टाहृतिमिमताभ्यां णफिञौ |
४. १. १५१ कुर्वादिभ्यो ण्यः |
४. १. १५२ सेनान्तलक्षणकारिभ्यश्च |
४. १. १५३ उदीचामिञ् |
४. १. १५४ तिकादिभ्यः फिञ् |
४. १. १५५ कौसल्यकार्मार्याभ्यां च |
४. १. १५६ अणो द्व्यचः |
४. १. १५७ उदीचां वृद्धादगोत्रात् |
४. १. १५८ वाकिनादीनां कुक् च |
४. १. १५९ पुत्रान्तादन्यतरस्याम् |
४. १. १६० प्राचामवृद्धात् फिन् बहुलम् |
४. १. १६१ मनोर्जातावञ्यतौ षुक् च |
४. १. १६२ अपत्यं पौत्रप्रभृति गोत्रम् |
४. १. १६३ जीवति तु वंश्ये युवा |
४. १. १६४ भ्रातरि च ज्यायसि |
४. १. १६५ वाऽन्यस्मिन् सपिण्डे स्थविरतरे जीवति |
४. १. १६६ वृद्धस्य च पूजायाम् |
४. १. १६७ यूनश्च कुत्सायाम् |
४. १. १६८ जनपदशब्दात् क्षत्रियादञ् |
४. १. १६९ साल्वेयगान्धारिभ्यां च |
४. १. १७० द्व्यञ्मगधकलिङ्गसूरमसादण् |
४. १. १७१ वृद्धेत्कोसलाजादाञ्ञ्यङ् |
४. १. १७२ कुरुणादिभ्यो ण्यः |
४. १. १७३ साल्वावयवप्रत्यग्रथकलकूटाश्मकादिञ् |
४. १. १७४ ते तद्राजाः |
४. १. १७५ कम्बोजाल्लुक् |
४. १. १७६ स्त्रियामवन्तिकुन्तिकुरुभ्यश्च |
४. १. १७७ अतश्च |
४. १. १७८ न प्राच्यभर्गादियौधेयादिभ्यः |

Hits: 206
X

Right Click

No right click