४. १. १ ङ्याप्प्रातिपदिकात् |
४. १. २ स्वौजसमौट्छष्टाभ्याम्भिस्ङेभ्याम्भ्यस्ङसिभ्याम्भ्यस्-
ङसोसाम्ङ्योस्सुप् |
४. १. ३ स्त्रियाम् |
४. १. ४ अजाद्यतष्टाप् |
४. १. ५ ऋन्नेभ्यो ङीप् |
४. १. ६ उगितश्च |
४. १. ७ वनो र च |
४. १. ८ पादोऽन्यतरस्याम् |
४. १. ९ टाबृचि |
४. १. १० न षट्स्वस्रादिभ्यः |
४. १. ११ मनः |
४. १. १२ अनो बहुव्रीहेः |
४. १. १३ डाबुभाभ्यामन्यतरस्याम् |
४. १. १४ अनुपसर्जनात् |
४. १. १५ टिड्ढाणञ्द्वयसज्दघ्नञ्मात्रच्तयप्ठक्ठञ्कञ्क्वरपः
.
४. १. १६ यञश्च |
४. १. १७ प्राचां ष्फ तद्धितः |
४. १. १८ सर्वत्र लोहितादिकतान्तेभ्यः |
४. १. १९ कौरव्यमाण्डूकाभ्यां च |
४. १. २० वयसि प्रथमे |
४. १. २१ द्विगोः |
४. १. २२ अपरिमाणबिस्ताचितकम्बल्येभ्यो न तद्धितलुकि |
४. १. २३ काण्डान्तात् क्षेत्रे |
४. १. २४ पुरुषात् प्रमाणेऽन्यतरस्याम् |
४. १. २५ बहुव्रीहेरूधसो ङीष्.
४. १. २६ संख्याऽव्ययादेर्ङीप् |
४. १. २७ दामहायनान्ताच्च |
४. १. २८ अन उपधालोपिनोन्यतरस्याम् |
४. १. २९ नित्यं संज्ञाछन्दसोः |
४. १. ३० केवलमामकभागधेयपापापरसमानार्यकृत-
सुमङ्गलभेषजाच्च |
४. १. ३१ रात्रेश्चाजसौ |
४. १. ३२ अन्तर्वत्पतिवतोर्नुक् |
४. १. ३३ पत्युर्नो यज्ञसंयोगे |
४. १. ३४ विभाषा सपूर्वस्य |
४. १. ३५ नित्यं सपत्न्यादिषु |
४. १. ३६ पूतक्रतोरै च |
४. १. ३७ वृषाकप्यग्निकुसितकुसीदानामुदात्तः |
४. १. ३८ मनोरौ वा |
४. १. ३९ वर्णादनुदात्तात्तोपधात्तो नः |
४. १. ४० अन्यतो ङीष्.
४. १. ४१ षिद्गौरादिभ्यश्च |
४. १. ४२ जानपदकुण्डगोणस्थलभाजनागकालनीलकुशकामुक-
कबराद्वृत्त्यमत्रावपनाकृत्रिमाश्राणास्थौल्य-
वर्णानाच्छादनायोविकारमैथुनेच्छाकेशवेशेषु |
४. १. ४३ शोणात् प्राचाम् |
४. १. ४४ वोतो गुणवचनात् |
४. १. ४५ बह्वादिभ्यश्च |
४. १. ४६ नित्यं छन्दसि |
४. १. ४७ भुवश्च |
४. १. ४८ पुंयोगादाख्यायाम् |
४. १. ४९ इन्द्रवरुणभवशर्वरुद्रमृडहिमारण्ययवयवन-
मातुलाचार्याणामानुक् |
४. १. ५० क्रीतात् करणपूर्वात् |
४. १. ५१ क्तादल्पाख्यायाम् |
४. १. ५२ बहुव्रीहेश्चान्तोदात्तात् |
४. १. ५३ अस्वाङ्गपूर्वपदाद्वा |
४. १. ५४ स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात् |
४. १. ५५ नासिकोदरौष्ठजङ्घादन्तकर्णशृङ्गाच्च |
४. १. ५६ न क्रोडादिबह्वचः |
४. १. ५७ सहनञ्विद्यमानपूर्वाच्च |
४. १. ५८ नखमुखात् संज्ञायाम् |
४. १. ५९ दीर्घजिह्वी च च्छन्दसि |
४. १. ६० दिक्पूर्वपदान्ङीप् |
४. १. ६१ वाहः |
४. १. ६२ सख्यशिश्वीति भाषायाम् |
४. १. ६३ जातेरस्त्रीविषयादयोपधात् |
४. १. ६४ पाककर्णपर्णपुष्पफलमूलबालोत्तरपदाच्च |
४. १. ६५ इतो मनुष्यजातेः |
४. १. ६६ ऊङुतः |
४. १. ६७ बाह्वन्तात् संज्ञायाम् |
४. १. ६८ पङ्गोश्च |
४. १. ६९ ऊरूत्तरपदादौपम्ये |
४. १. ७० संहितशफलक्षणवामादेश्च |
४. १. ७१ कद्रुकमण्डल्वोश्छन्दसि |
४. १. ७२ संज्ञायाम् |
४. १. ७३ शार्ङ्गरवाद्यञो ङीन् |
४. १. ७४ यङश्चाप् |
४. १. ७५ आवट्याच्च |
४. १. ७६ तद्धिताः |
४. १. ७७ यूनस्तिः |
४. १. ७८ अणिञोरनार्षयोर्गुरूपोत्तमयोः ष्यङ् गोत्रे |
४. १. ७९ गोत्रावयवात् |
४. १. ८० क्रौड्यादिभ्यश्च |
४. १. ८१ दैवयज्ञिशौचिवृक्षिसात्यमुग्रि-
काण्ठेविद्धिभ्योऽन्यतरस्याम् |
४. १. ८२ समर्थानां प्रथमाद्वा |
४. १. ८३ प्राग्दीव्यतोऽण् |
४. १. ८४ अश्वपत्यादिभ्यश्च |
४. १. ८५ दित्यदित्यादित्यपत्युत्तरपदाण्ण्यः |
४. १. ८६ उत्सादिभ्योऽञ् |
४. १. ८७ स्त्रीपुंसाभ्यां नञ्स्नञौ भवनात् |
४. १. ८८ द्विगोर्लुगनपत्ये |
४. १. ८९ गोत्रेऽलुगचि |
४. १. ९० यूनि लुक् |
४. १. ९१ फक्फिञोरन्यतरस्याम् |
४. १. ९२ तस्यापत्यम् |
४. १. ९३ एको गोत्रे |
४. १. ९४ गोत्राद्यून्यस्त्रियाम् |
४. १. ९५ अत इञ् |
४. १. ९६ बाह्वादिभ्यश्च |
४. १. ९७ सुधातुरकङ् च |
४. १. ९८ गोत्रे कुञ्जादिभ्यश्च्फञ् |
४. १. ९९ नडादिभ्यः फक् |
४. १. १०० हरितादिभ्योऽञः |

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