३. २. १०१ अन्येष्वपि दृश्यते |
३. २. १०२ निष्ठा |
३. २. १०३ सुयजोर्ङ्वनिप् |
३. २. १०४ जीर्यतेरतृन् |
३. २. १०५ छन्दसि लिट् |
३. २. १०६ लिटः कानज्वा |
३. २. १०७ क्वसुश्च |
३. २. १०८ भाषायां सदवसश्रुवः |
३. २. १०९ उपेयिवाननाश्वाननूचानश्च |
३. २. ११० लुङ् |
३. २. १११ अनद्यतने लङ् |
३. २. ११२ अभिज्ञावचने लृट् |
३. २. ११३ न यदि |
३. २. ११४ विभाषा साकाङ्क्षे |
३. २. ११५ परोक्षे लिट् |
३. २. ११६ हशश्वतोर्लङ् च |
३. २. ११७ प्रश्ने चासन्नकाले |
३. २. ११८ लट् स्मे |
३. २. ११९ अपरोक्षे च |
३. २. १२० ननौ पृष्टप्रतिवचने |
३. २. १२१ नन्वोर्विभाषा |
३. २. १२२ पुरि लुङ् चास्मे |
३. २. १२३ वर्तमाने लट् |
३. २. १२४ लटः शतृशनचावप्रथमासमानाधिकरणे |
३. २. १२५ सम्बोधने च |
३. २. १२६ लक्षणहेत्वोः क्रियायाः |
३. २. १२७ तौ सत् |
३. २. १२८ पूङ्यजोः शानन् |
३. २. १२९ ताच्छील्यवयोवचनशक्तिषु चानश् |
३. २. १३० इङ्धार्योः शत्रकृच्छ्रिणि |
३. २. १३१ द्विषोऽमित्रे |
३. २. १३२ सुञो यज्ञसंयोगे |
३. २. १३३ अर्हः पूजायाम् |
३. २. १३४ आक्वेस्तच्छीलतद्धर्मतत्साधुकारिषु |
३. २. १३५ तृन् |
३. २. १३६ अलंकृञ्निराकृञ्प्रजनोत्पचोत्पतोन्मद-
रुच्यपत्रपवृतुवृधुसहचर इष्णुच् |
३. २. १३७ णेश्छन्दसि |
३. २. १३८ भुवश्च |
३. २. १३९ ग्लाजिस्थश्च क्स्नुः |
३. २. १४० त्रसिगृधिधृषिक्षिपेः क्नुः |
३. २. १४१ शमित्यष्टाभ्यो घिनुण् |
३. २. १४२ संपृचानुरुधाङ्यमाङ्यसपरिसृसंसृज-
परिदेविसंज्वरपरिक्षिपपरिरटपरिवदपरिदहपरिमुह-
दुषद्विषद्रुहदुहयुजाक्रीडविविचत्यजरज-
भजातिचरापचरामुषाभ्याहनश्च |
३. २. १४३ वौ कषलसकत्थस्रम्भः |
३. २. १४४ अपे च लषः |
३. २. १४५ प्रे लपसृद्रुमथवदवसः |
३. २. १४६ निन्दहिंसक्लिशखादविनाशपरिक्षिपपरिरटपरिवादि-
व्याभाषासूयो वुञ् |
३. २. १४७ देविक्रुशोश्चोपसर्गे |
३. २. १४८ चलनशब्दार्थादकर्मकाद्युच् |
३. २. १४९ अनुदात्तेतश्च हलादेः |
३. २. १५० जुचङ्क्रम्यदन्द्रम्यसृगृधिज्वलशुचलषपतपदः
.
३. २. १५१ क्रुधमण्डार्थेभ्यश्च |
३. २. १५२ न यः |
३. २. १५३ सूददीपदीक्षश्च |
३. २. १५४ लषपतपदस्थाभूवृषहनकमगमशॄभ्य उकञ् |
३. २. १५५ जल्पभिक्षकुट्टलुण्टवृङः षाकन् |
३. २. १५६ प्रजोरिनिः |
३. २. १५७ जिदृक्षिविश्रीण्वमाव्यथाभ्यमपरिभूप्रसूभ्यश्च |
३. २. १५८ स्पृहिगृहिपतिदयिनिद्रातन्द्राश्रद्धाभ्य आलुच् |
३. २. १५९ दाधेट्सिशदसदो रुः |
३. २. १६० सृघस्यदः क्मरच् |
३. २. १६१ भञ्जभासमिदो घुरच् |
३. २. १६२ विदिभिदिच्छिदेः कुरच् |
३. २. १६३ इण्नश्जिसर्त्तिभ्यः क्वरप् |
३. २. १६४ गत्वरश्च |
३. २. १६५ जागुरूकः |
३. २. १६६ यजजपदशां यङः |
३. २. १६७ नमिकम्पिस्म्यजसकमहिंसदीपो रः |
३. २. १६८ सनाशंसभिक्ष उः |
३. २. १६९ विन्दुरिच्छुः |
३. २. १७० क्याच्छन्दसि |
३. २. १७१ आदृगमहनजनः किकिनौ लिट् च |
३. २. १७२ स्वपितृषोर्नजिङ् |
३. २. १७३ शॄवन्द्योरारुः |
३. २. १७४ भियः क्रुक्लुकनौ |
३. २. १७५ स्थेशभासपिसकसो वरच् |
३. २. १७६ यश्च यङः |
३. २. १७७ भ्राजभासधुर्विद्युतोर्जिपॄजुग्रावस्तुवः क्विप् |
३. २. १७८ अन्येभ्योऽपि दृश्यते |
३. २. १७९ भुवः संज्ञाऽन्तरयोः |
३. २. १८० विप्रसम्भ्यो ड्वसंज्ञायाम् |
३. २. १८१ धः कर्मणि ष्ट्रन् |
३. २. १८२ दाम्नीशसयुयुजस्तुतुदसिसिचमिहपतदशनहः करणे |
३. २. १८३ हलसूकरयोः पुवः |
३. २. १८४ अर्तिलूधूसूखनसहचर इत्रः |
३. २. १८५ पुवः संज्ञायाम् |
३. २. १८६ कर्तरि चर्षिदेवतयोः |
३. २. १८७ ञीतः क्तः |
३. २. १८८ मतिबुद्धिपूजार्थेभ्यश्च |

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