३. २. १ कर्मण्यण् |
३. २. २ ह्वावामश्च |
३. २. ३ आतोऽनुपसर्गे कः |
३. २. ४ सुपि स्थः |
३. २. ५ तुन्दशोकयोः परिमृजापनुदोः |
३. २. ६ प्रे दाज्ञः |
३. २. ७ समि ख्यः |
३. २. ८ गापोष्टक् |
३. २. ९ हरतेरनुद्यमनेऽच् |
३. २. १० वयसि च |
३. २. ११ आङि ताच्छील्ये |
३. २. १२ अर्हः |
३. २. १३ स्तम्बकर्णयोः रमिजपोः |
३. २. १४ शमि धातोः संज्ञायाम् |
३. २. १५ अधिकरणे शेतेः |
३. २. १६ चरेष्टः |
३. २. १७ भिक्षासेनाऽऽदायेषु च |
३. २. १८ पुरोऽग्रतोऽग्रेषु सर्तेः |
३. २. १९ पूर्वे कर्तरि |
३. २. २० कृञो हेतुताच्छील्यानुलोम्येषु |
३. २. २१ दिवाविभानिशाप्रभाभास्करान्तानन्तादिबहुनान्दी- किम्लिपि
लिबिबलिभक्तिकर्तृचित्रक्षेत्र-
संख्याजङ्घाबाह्वहर्यत्तत्धनुररुष्षु |
३. २. २२ कर्मणि भृतौ |
३. २. २३ न शब्दश्लोककलहगाथावैरचाटुसूत्रमन्त्रपदेषु |
३. २. २४ स्तम्बशकृतोरिन् |
३. २. २५ हरतेर्दृतिनाथयोः पशौ |
३. २. २६ फलेग्रहिरात्मम्भरिश्च |
३. २. २७ छन्दसि वनसनरक्षिमथाम् |
३. २. २८ एजेः खश् |
३. २. २९ नासिकास्तनयोर्ध्माधेटोः |
३. २. ३० नाडीमुष्ट्योश्च |
३. २. ३१ उदि कूले रुजिवहोः |
३. २. ३२ वहाभ्रे लिहः |
३. २. ३३ परिमाणे पचः |
३. २. ३४ मितनखे च |
३. २. ३५ विध्वरुषोः तुदः |
३. २. ३६ असूर्यललाटयोर्दृशितपोः |
३. २. ३७ उग्रम्पश्येरम्मदपाणिन्धमाश्च |
३. २. ३८ प्रियवशे वदः खच् |
३. २. ३९ द्विषत्परयोस्तापेः |
३. २. ४० वाचि यमो व्रते |
३. २. ४१ पूःसर्वयोर्दारिसहोः |
३. २. ४२ सर्वकूलाभ्रकरीषेषु कषः |
३. २. ४३ मेघर्तिभयेषु कृञः |
३. २. ४४ क्षेमप्रियमद्रेऽण् च |
३. २. ४५ आशिते भुवः करणभावयोः |
३. २. ४६ संज्ञायां भृतॄवृजिधारिसहितपिदमः |
३. २. ४७ गमश्च |
३. २. ४८ अन्तात्यन्ताध्वदूरपारसर्वानन्तेषु डः |
३. २. ४९ आशिषि हनः |
३. २. ५० अपे क्लेशतमसोः |
३. २. ५१ कुमारशीर्षयोर्णिनिः |
३. २. ५२ लक्षणे जायापत्योष्टक् |
३. २. ५३ अमनुष्यकर्तृके च |
३. २. ५४ शक्तौ हस्तिकपाटयोः |
३. २. ५५ पाणिघताडघौ शिल्पिनि |
३. २. ५६ आढ्यसुभगस्थूलपलितनग्नान्धप्रियेषु
च्व्य्र्थेष्वच्वौ कृञः करणे ख्युन् |
३. २. ५७ कर्तरि भुवः खिष्णुच्खुकञौ |
३. २. ५८ स्पृशोऽनुदके क्विन् |
३. २. ५९ ऋत्विग्दधृक्स्रग्दिगुष्णिगञ्चुयुजिक्रुञ्चां च |
३. २. ६० त्यदादिषु दृशोऽनालोचने कञ् च |
३. २. ६१
सत्सूद्विषद्रुहदुहयुजविदभिदच्छिद-जिनीराजामुपसर्गेऽपि
क्विप् |
३. २. ६२ भजो ण्विः |
३. २. ६३ छन्दसि सहः |
३. २. ६४ वहश्च |
३. २. ६५ कव्यपुरीषपुरीष्येषु ञ्युट् |
३. २. ६६ हव्येऽनन्तः पादम् |
३. २. ६७ जनसनखनक्रमगमो विट् |
३. २. ६८ अदोऽनन्ने |
३. २. ६९ क्रव्ये च |
३. २. ७० दुहः कब् घश्च |
३. २. ७१ मन्त्रे श्वेतवहौक्थशस्पुरोडाशो ण्विन् |
३. २. ७२ अवे यजः |
३. २. ७३ विजुपे छन्दसि |
३. २. ७४ आतो मनिन्क्वनिप्वनिपश्च |
३. २. ७५ अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते |
३. २. ७६ क्विप् च |
३. २. ७७ स्थः क च |
३. २. ७८ सुप्यजातौ णिनिस्ताच्छिल्ये |
३. २. ७९ कर्तर्युपमाने |
३. २. ८० व्रते |
३. २. ८१ बहुलमाभीक्ष्ण्ये |
३. २. ८२ मनः |
३. २. ८३ आत्ममाने खश्च |
३. २. ८४ भूते |
३. २. ८५ करणे यजः |
३. २. ८६ कर्मणि हनः |
३. २. ८७ ब्रह्मभ्रूणवृत्रेषु क्विप् |
३. २. ८८ बहुलं छन्दसि |
३. २. ८९ सुकर्मपापमन्त्रपुण्येषु कृञः |
३. २. ९० सोमे सुञः |
३. २. ९१ अग्नौ चेः |
३. २. ९२ कर्मण्यग्न्याख्यायाम् |
३. २. ९३ कर्मणीनिर्विक्रियः |
३. २. ९४ दृशेः क्वनिप् |
३. २. ९५ राजनि युधिकृञः |
३. २. ९६ सहे च |
३. २. ९७ सप्तम्यां जनेर्डः |
३. २. ९८ पञ्चम्यामजातौ |
३. २. ९९ उपसर्गे च संज्ञायाम् |
३. २. १०० अनौ कर्मणि |

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