३. १. ७६ तनूकरणे तक्षः |
३. १. ७७ तुदादिभ्यः शः |
३. १. ७८ रुधादिभ्यः श्नम् |
३. १. ७९ तनादिकृञ्भ्य उः |
३. १. ८० धिन्विकृण्व्योर च |
३. १. ८१ क्र्यादिभ्यः श्ना |
३. १. ८२ स्तम्भुस्तुम्भुस्कम्भुस्कुम्भुस्कुञ्भ्यः श्नुश्च |
३. १. ८३ हलः श्नः शानज्झौ |
३. १. ८४ छन्दसि शायजपि |
३. १. ८५ व्यत्ययो बहुलम् |
३. १. ८६ लिङ्याशिष्यङ् |
३. १. ८७ कर्मवत् कर्मणा तुल्यक्रियः |
३. १. ८८ तपस्तपःकर्मकस्यैव |
३. १. ८९ न दुहस्नुनमां यक्चिणौ |
३. १. ९० कुषिरजोः प्राचां श्यन् परस्मैपदं च |
३. १. ९१ धातोः |
३. १. ९२ तत्रोपपदं सप्तमीस्थम् |
३. १. ९३ कृदतिङ् |
३. १. ९४ वाऽसरूपोऽस्त्रियाम् |
३. १. ९५ कृत्याः प्राङ् ण्वुलः |
३. १. ९६ तव्यत्तव्यानीयरः |
३. १. ९७ अचो यत् |
३. १. ९८ पोरदुपधात् |
३. १. ९९ शकिसहोश्च |
३. १. १०० गदमदचरयमश्चानुपसर्गे |
३. १. १०१ अवद्यपण्यवर्या गर्ह्यपणितव्यानिरोधेषु |
३. १. १०२ वह्यं करणम् |
३. १. १०३ अर्यः स्वामिवैश्ययोः |
३. १. १०४ उपसर्या काल्या प्रजने |
३. १. १०५ अजर्यं संगतम् |
३. १. १०६ वदः सुपि क्यप् च |
३. १. १०७ भुवो भावे |
३. १. १०८ हनस्त च |
३. १. १०९ एतिस्तुशस्वृदृजुषः क्यप् |
३. १. ११० ऋदुपधाच्चाकॢपिचृतेः |
३. १. १११ ई च खनः |
३. १. ११२ भृञोऽसंज्ञायाम् |
३. १. ११३ मृजेर्विभाषा |
३. १. ११४ राजसूयसूर्यमृषोद्यरुच्यकुप्यकृष्टपच्याव्यथ्याः
.
३. १. ११५ भिद्योद्ध्यौ नदे |
३. १. ११६ पुष्यसिद्ध्यौ नक्षत्रे |
३. १. ११७ विपूयविनीयजित्या मुञ्जकल्कहलिषु |
३. १. ११८ प्रत्यपिभ्यां ग्रहेश्छन्दसि |
३. १. ११९ पदास्वैरिबाह्यापक्ष्येषु च |
३. १. १२० विभाषा कृवृषोः |
३. १. १२१ युग्यं च पत्त्रे |
३. १. १२२ अमावस्यदन्यतरस्याम् |
३. १. १२३ छन्दसि निष्टर्क्यदेवहूयप्रणीयोन्नीयोच्छिष्य
मर्यस्तर्याध्वर्यखन्यखान्यदेवयज्याऽऽपृच्छ्य
प्रतिषीव्यब्रह्मवाद्यभाव्यस्ताव्योपचाय्यपृडानि |
३. १. १२४ ऋहलोर्ण्यत् |
३. १. १२५ ओरावश्यके |
३. १. १२६ आसुयुवपिरपिलपित्रपिचमश्च |
३. १. १२७ आनाय्योऽनित्ये |
३. १. १२८ प्रणाय्योऽसंमतौ |
३. १. १२९ पाय्यसान्नाय्यनिकाय्यधाय्या मानहविर्निवाससामिधेनीषु |
३. १. १३० क्रतौ कुण्डपाय्यसंचाय्यौ |
३. १. १३१ अग्नौ परिचाय्योपचाय्यसमूह्याः |
३. १. १३२ चित्याग्निचित्ये च |
३. १. १३३ ण्वुल्तृचौ |
३. १. १३४ नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः |
३. १. १३५ इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः |
३. १. १३६ आतश्चोपसर्गे |
३. १. १३७ पाघ्राध्माधेट्दृशः शः |
३. १. १३८ अनुपसर्गाल्लिम्पविन्दधारिपारिवेद्युदेजिचेति-
सातिसाहिभ्यश्च |
३. १. १३९ ददातिदधात्योर्विभाषा |
३. १. १४० ज्वलितिकसन्तेभ्यो णः |
३. १. १४१ श्याऽऽद्व्यधास्रुसंस्र्वतीणवसाऽवहृलिह-
श्लिषश्वसश्च |
३. १. १४२ दुन्योरनुपसर्गे |
३. १. १४३ विभाषा ग्रहेः |
३. १. १४४ गेहे कः |
३. १. १४५ शिल्पिनि ष्वुन् |
३. १. १४६ गस्थकन् |
३. १. १४७ ण्युट् च |
३. १. १४८ हश्च व्रीहिकालयोः |
३. १. १४९ प्रुसृल्वः समभिहारे वुन् |
३. १. १५० आशिषि च |

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