२. ४. १ द्विगुरेकवचनम् |
२. ४. २ द्वंद्वश्च प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम् |
२. ४. ३ अनुवादे चरणानाम् |
२. ४. ४ अध्वर्युक्रतुरनपुंसकम्. |
२. ४. ५ अध्ययनतोऽविप्रकृष्टाख्यानाम् |
२. ४. ६ जातिरप्राणिनाम् |
२. ४. ७ विशिष्टलिङ्गो नदी देशोऽग्रामाः |
२. ४. ८ क्षुद्रजन्तवः |
२. ४. ९ येषां च विरोधः शाश्वतिकः |
२. ४. १० शूद्राणामनिरवसितानाम् |
२. ४. ११ गवाश्वप्रभृतीनि च |
२. ४. १२ विभाषा वृक्षमृगतृणधान्यव्यञ्जन-
पशुशकुन्यश्ववडवपूर्वापराधरोत्तराणाम् |
२. ४. १३ विप्रतिषिद्धं चानधिकरणवाचि |
२. ४. १४ न दधिपयआदीनि |
२. ४. १५ अधिकरणैतावत्त्वे च |
२. ४. १६ विभाषा समीपे |
२. ४. १७ स नपुंसकम् |
२. ४. १८ अव्ययीभावश्च |
२. ४. १९ तत्पुरुषोऽनञ् कर्मधारयः |
२. ४. २० संज्ञायां कन्थोशीनरेषु |
२. ४. २१ उपज्ञोपक्रमं तदाद्याचिख्यासायाम् |
२. ४. २२ छाया बाहुल्ये |
२. ४. २३ सभा राजाऽमनुष्यपूर्वा |
२. ४. २४ अशाला च |
२. ४. २५ विभाषा सेनासुराछायाशालानिशानाम् |
२. ४. २६ परवल्लिङ्गं द्वंद्वतत्पुरुषयोः |
२. ३. २७ पूर्ववदश्ववडवौ |
२. ४. २८ हेमन्तशिशिरावहोरात्रे च च्छन्दसि |
२. ४. २९ रात्राह्नाहाः पुंसि |
२. ४. ३० अपथं नपुंसकम् |
२. ४. ३१ अर्धर्चाः पुंसि च |
२. ४. ३२ इदमोऽन्वादेशेऽशनुदात्तस्तृतीयाऽऽदौ |
२. ४. ३३ एतदस्त्रतसोस्त्रतसौ चानुदात्तौ |
२. ४. ३४ द्वितीयाटौस्स्वेनः |
२. ४. ३५ आर्द्धधातुके |
२. ४. ३६ अदो जग्धिर्ल्यप्ति किति |
२. ४. ३७ लुङ्सनोर्घसॢ |
२. ४. ३८ घञपोश्च |
२. ४. ३९ बहुलं छन्दसि |
२. ४. ४० लिट्यन्यतरस्याम् |
२. ४. ४१ वेञो वयिः |
२. ४. ४२ हनो वध लिङि |
२. ४. ४३ लुङि च |
२. ४. ४४ आत्मनेपदेष्वन्यतरस्याम् |
२. ४. ४५ इणो गा लुङि |
२. ४. ४६ णौ गमिरबोधने |
२. ४. ४७ सनि च |
२. ४. ४८ इङश्च |
२. ४. ४९ गाङ् लिटि |
२. ४. ५० विभाषा लुङ्लृङोः |
२. ४. ५१ णौ च सँश्चङोः |
२. ४. ५२ अस्तेर्भूः |
२. ४. ५३ ब्रुवो वचिः |
२. ४. ५४ चक्षिङः ख्याञ् |
२. ४. ५५ वा लिटि |
२. ४. ५६ अजेर्व्यघञपोः |
२. ४. ५७ वा यौ |
२. ४. ५८ ण्यक्षत्रियार्षञितो यूनि लुगणिञोः |
२. ४. ५९ पैलादिभ्यश्च |
२. ४. ६० इञः प्राचाम् |
२. ४. ६१ न तौल्वलिभ्यः |
२. ४. ६२ तद्राजस्य बहुषु तेनैवास्त्रियाम् |
२. ४. ६३ यस्कादिभ्यो गोत्रे |
२. ४. ६४ यञञोश्च |
२. ४. ६५ अत्रिभृगुकुत्सवसिष्ठगोतमाङ्गिरोभ्यश्च |
२. ४. ६६ बह्वचः इञः प्राच्यभरतेषु |
२. ४. ६७ न गोपवनादिभ्यः |
२. ४. ६८ तिककितवादिभ्यो द्वंद्वे |
२. ४. ६९ उपकादिभ्योऽन्यतरस्यामद्वंद्वे |
२. ४. ७० आगस्त्यकौण्डिन्ययोरगस्तिकुण्डिनच् |
२. ४. ७१ सुपो धातुप्रातिपदिकयोः |
२. ४. ७२ अदिप्रभृतिभ्यः शपः |
२. ४. ७३ बहुलं छन्दसि |
२. ४. ७४ यङोऽचि च |
२. ४. ७५ जुहोत्यादिभ्यः श्लुः |
२. ४. ७६ बहुलं छन्दसि |
२. ४. ७७ गातिस्थाघुपाभूभ्यः सिचः परस्मैपदेषु |
२. ४. ७८ विभाषा घ्राधेट्शाच्छासः |
२. ४. ७९ तनादिभ्यस्तथासोः |
२. ४. ८० मन्त्रे घसह्वरणशवृदहाद्वृच्कृगमिजनिभ्यो लेः |
२. ४. ८१ आमः |
२. ४. ८२ अव्ययादाप्सुपः |
२. ४. ८३ नाव्ययीभावादतोऽम्त्वपञ्चम्याः |
२. ४. ८४ तृतीयासप्तम्योर्बहुलम् |
२. ४. ८५ लुटः प्रथमस्य डारौरसः |

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