२. ३. १ अनभिहिते |
२. ३. २ कर्मणि द्वितीया |
२. ३. ३ तृतीया च होश्छन्दसि |
२. ३. ४ अन्तराऽन्तरेण युक्ते |
२. ३. ५ कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे |
२. ३. ६ अपवर्गे तृतीया |
२. ३. ७ सप्तमीपञ्चम्यौ कारकमध्ये |
२. ३. ८ कर्मप्रवचनीययुक्ते द्वितीया |
२. ३. ९ यस्मादधिकं यस्य चेश्वरवचनं तत्र सप्तमी |
२. ३. १० पञ्चमी अपाङ्परिभिः |
२. ३. ११ प्रतिनिधिप्रतिदाने च यस्मात् |
२. ३. १२ गत्यर्थकर्मणि द्वितीयाचतुर्थ्यौ चेष्टायामनध्वनि |
२. ३. १३ चतुर्थी सम्प्रदाने |
२. ३. १४ क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः |
२. ३. १५ तुमर्थाच्च भाववचनात् |
२. ३. १६ नमःस्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च |
२. ३. १७ मन्यकर्मण्यनादरे विभाषाऽप्राणिषु |
२. ३. १८ कर्तृकरणयोस्तृतीया |
२. ३. १९ सहयुक्तेऽप्रधाने |
२. ३. २० येनाङ्गविकारः |
२. ३. २१ इत्थंभूतलक्षणे |
२. ३. २२ संज्ञोऽन्यतरस्यां कर्मणि |
२. ३. २३ हेतौ |
२. ३. २४ अकर्तर्यृणे पञ्चमी |
२. ३. २५ विभाषा गुणेऽस्त्रियाम् |
२. ३. २६ षष्ठी हेतुप्रयोगे |
२. ३. २७ सर्वनाम्नस्तृतीया च |
२. ३. २८ अपादाने पञ्चमी |
२. ३. २९ अन्यारादितरर्त्तेदिक्शब्दाञ्चूत्तरपदाजाहियुक्ते |
२. ३. ३० षष्ठ्यतसर्थप्रत्ययेन |
२. ३. ३१ एनपा द्वितीया |
२. ३. ३२ पृथग्विनानानाभिस्तृतीयाऽन्यतरस्याम् |
२. ३. ३३ करणे च स्तोकाल्पकृच्छ्रकतिपयस्यासत्त्ववचनस्य |
२. ३. ३४ दूरान्तिकार्थैः षष्ठ्यन्यतरस्याम् |
२. ३. ३५ दूरान्तिकार्थेभ्यो द्वितीया च |
२. ३. ३६ सप्तम्यधिकरणे च |
२. ३. ३७ यस्य च भावेन भावलक्षणम् |
२. ३. ३८ षष्ठी चानादरे |
२. ३. ३९ स्वामीश्वराधिपतिदायादसाक्षिप्रतिभूप्रसूतैश्च |
२. ३. ४० आयुक्तकुशलाभ्यां चासेवायाम् |
२. ३. ४१ यतश्च निर्धारणम् |
२. ३. ४२ पञ्चमी विभक्ते |
२. ३. ४३ साधुनिपुणाभ्याम् अर्चायां सप्तम्यप्रतेः |
२. ३. ४४ प्रसितोत्सुकाभ्यां तृतीया च |
२. ३. ४५ नक्षत्रे च लुपि |
२. ३. ४६ प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा |
२. ३. ४७ सम्बोधने च |
२. ३. ४८ साऽऽमन्त्रितम् |
२. ३. ४९ एकवचनं संबुद्धिः |
२. ३. ५० षष्ठी शेषे |
२. ३. ५१ ज्ञोऽविदर्थस्य करणे |
२. ३. ५२ अधीगर्थदयेशां कर्मणि |
२. ३. ५३ कृञः प्रतियत्ने |
२. ३. ५४ रुजार्थानां भाववचनानामज्वरेः |
२. ३. ५५ आशिषि नाथः |
२. ३. ५६ जासिनिप्रहणनाटक्राथपिषां हिंसायाम् |
२. ३. ५७ व्यवहृपणोः समर्थयोः |
२. ३. ५८ दिवस्तदर्थस्य |
२. ३. ५९ विभाषोपसर्गे |
२. ३. ६० द्वितीया ब्राह्मणे |
२. ३. ६१ प्रेष्यब्रुवोर्हविषो देवतासम्प्रदाने |
२. ३. ६२ चतुर्थ्यर्थे बहुलं छन्दसि |
२. ३. ६३ यजेश्च करणे |
२. ३. ६४ कृत्वोऽर्थप्रयोगे कालेऽधिकरणे |
२. ३. ६५ कर्तृकर्मणोः कृति |
२. ३. ६६ उभयप्राप्तौ कर्मणि |
२. ३. ६७ क्तस्य च वर्तमाने |
२. ३. ६८ अधिकरणवाचिनश्च |
२. ३. ६९ न लोकाव्ययनिष्ठाखलर्थतृनाम् |
२. ३. ७० अकेनोर्भविष्यदाधमर्ण्ययोः |
२. ३. ७१ कृत्यानां कर्तरि वा |
२. ३. ७२ तुल्यार्थैरतुलोपमाभ्यां तृतीयाऽन्यतरस्याम् |
२. ३. ७३ चतुर्थी चाशिष्यायुष्यमद्रभद्र-
कुशलसुखार्थहितैः |

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