१. ४. १ आ कडारादेका संज्ञा |
१. ४. २ विप्रतिषेधे परं कार्यम् |
१. ४. ३ यू स्त्र्याख्यौ नदी |
१. ४. ४ नेयङुवङ्स्थानावस्त्री |
१. ४. ५ वाऽऽमि |
१. ४. ६ ङिति ह्रस्वश्च |
१. ४. ७ शेषो घ्यसखि |
१. ४. ८ पतिः समास एव |
१. ४. ९ षष्ठीयुक्तश्छन्दसि वा |
१. ४. १० ह्रस्वं लघु |
१. ४. ११ संयोगे गुरु |
१. ४. १२ दीर्घं च |
१. ४. १३ यस्मात् प्रत्ययविधिस्तदादि प्रत्ययेऽङ्गम् |
१. ४. १४ सुप्तिङन्तं पदम् |
१. ४. १५ नः क्ये |
१. ४. १६ सिति च |
१. ४. १७ स्वादिष्वसर्वनमस्थाने |
१. ४. १८ यचि भम् |
१. ४. १९ तसौ मत्वर्थे |
१. ४. २० अयस्मयादीनि च्छन्दसि |
१. ४. २१ बहुषु बहुवचनम् |
१. ४. २२ द्व्येकयोर्द्विवचनैकवचने |
१. ४. २३ कारके |
१. ४. २४ ध्रुवमपायेऽपादानम् |
१. ४. २५ भीत्रार्थानां भयहेतुः |
१. ४. २६ पराजेरसोढः |
१. ४. २७ वारणार्थानां ईप्सितः |
१. ४. २८ अन्तर्द्धौ येनादर्शनमिच्छति |
१. ४. २९ आख्यातोपयोगे |
१. ४. ३० जनिकर्तुः प्रकृतिः |
१. ४. ३१ भुवः प्रभवः |
१. ४. ३२ कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम् |
१. ४. ३३ रुच्यर्थानां प्रीयमाणः |
१. ४. ३४ श्लाघह्नुङ्स्थाशपां ज्ञीप्स्यमानः |
१. ४. ३५ धारेरुत्तमर्णः |
१. ४. ३६ स्पृहेरीप्सितः |
१. ४. ३७ क्रुधद्रुहेर्ष्याऽसूयार्थानां यं प्रति कोपः |
१. ४. ३८ क्रुधद्रुहोरुपसृष्टयोः कर्म |
१. ४. ३९ राधीक्ष्योर्यस्य विप्रश्नः |
१. ४. ४० प्रत्याङ्भ्यां श्रुवः पूर्वस्य कर्ता |
१. ४. ४१ अनुप्रतिगृणश्च |
१. ४. ४२ साधकतमं करणम् |
१. ४. ४३ दिवः कर्म च |
१. ४. ४४ परिक्रयणे सम्प्रदानमन्यतरस्याम् |
१. ४. ४५ आधारोऽधिकरणम् |
१. ४. ४६ अधिशीङ्स्थाऽऽसां कर्म |
१. ४. ४७ अभिनिविशश्च |
१. ४. ४८ उपान्वध्याङ्वसः |
१. ४. ४९ कर्तुरीप्सिततमं कर्म |
१. ४. ५० तथायुक्तं चानिप्सीतम् |
१. ४. ५१ अकथितं च |
१. ४. ५२ गतिबुद्धिप्रत्यवसानार्थशब्दकर्माकर्मकाणामणि कर्ता
स णौ |
१. ४. ५३ हृक्रोरन्यतरस्याम् |
१. ४. ५४ स्वतन्त्रः कर्ता |
१. ४. ५५ तत्प्रयोजको हेतुश्च |
१. ४. ५६ प्राग्रीश्वरान्निपातः |
१. ४. ५७ चादयोऽसत्त्वे |
१. ४. ५८ प्रादयः |
१. ४. ५९ उपसर्गाः क्रियायोगे |
१. ४. ६० गतिश्च |
१. ४. ६१ ऊर्यादिच्विडाचश्च |
१. ४. ६२ अनुकरणं चानितिपरम् |
१. ४. ६३ आदरानादरयोः सदसती |
१. ४. ६४ भूषणेऽलम् |
१. ४. ६५ अन्तरपरिग्रहे |
१. ४. ६६ कणेमनसी श्रद्धाप्रतीघाते |
१. ४. ६७ पुरोऽव्ययम् |
१. ४. ६८ अस्तं च |
१. ४. ६९ अच्छ गत्यर्थवदेषु |
१. ४. ७० अदोऽनुपदेशे |
१. ४. ७१ तिरोऽन्तर्धौ | variationर्द्धौ
१. ४. ७२ विभाषा कृञि |
१. ४. ७३ उपाजेऽन्वाजे |
१. ४. ७४ साक्षात्प्रभृतीनि च |
१. ४. ७५ अनत्याधान उरसिमनसी |
१. ४. ७६ मध्येपदेनिवचने च |
१. ४. ७७ नित्यं हस्ते पाणावुपयमने |
१. ४. ७८ प्राध्वं बन्धने |
१. ४. ७९ जीविकोपनिषदावौपम्ये |
१. ४. ८० ते प्राग्धातोः |
१. ४. ८१ छन्दसि परेऽपि |
१. ४. ८२ व्यवहिताश्च |
१. ४. ८३ कर्मप्रवचनीयाः |
१. ४. ८४ अनुर्लक्षणे |
१. ४. ८५ तृतीयाऽर्थे |
१. ४. ८६ हीने |
१. ४. ८७ उपोऽधिके च |
१. ४. ८८ अपपरी वर्जने |
१. ४. ८९ आङ् मर्यादावचने |
१. ४. ९० लक्षणेत्थम्भूताख्यानभागवीप्सासु प्रतिपर्यनवः |
१. ४. ९१ अभिरभागे |
१. ४. ९२ प्रतिः प्रतिनिधिप्रतिदानयोः |
१. ४. ९३ अधिपरी अनर्थकौ |
१. ४. ९४ सुः पूजायाम् |
१. ४. ९५ अतिरतिक्रमणे च |
१. ४. ९६ अपिः पदार्थसम्भावनान्ववसर्गगर्हासमुच्चयेषु |
१. ४. ९७ अधिरीश्वरे |
१. ४. ९८ विभाषा कृञि |
१. ४. ९९ लः परस्मैपदम् |
१. ४. १०० तङानावात्मनेपदम् |
१. ४. १०१ तिङस्त्रीणि त्रीणि प्रथममध्यमोत्तमाः |
१. ४. १०२ तान्येकवचनद्विवचनबहुवचनान्येकशः |
१. ४. १०३ सुपः |
१. ४. १०४ विभक्तिश्च |
१. ४. १०५ युष्मद्युपपदे समानाधिकरणे स्थानिन्यपि मध्यमः |
१. ४. १०६ प्रहासे च मन्योपपदे मन्यतेरुत्तम एकवच्च |
१. ४. १०७ अस्मद्युत्तमः |
१. ४. १०८ शेषे प्रथमः |
१. ४. १०९ परः संनिकर्षः संहिता |
१. ४. ११० विरामोऽवसानम् |

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