कर्मणि व प्रयोजकरुपे (तृ. पु. ए. व.)- ११
धातू | कर्मणिरूप | प्रयोजकरूप |
---|---|---|
सू | सूयते | सवयति - ते |
सूच् | सूच्यते | सूचयति - ते |
नि + सूद् - षूद् | निषूद्यते | निषूदयति - ते |
प्र + सृ - सर् | प्रिस्राय्ते | प्रसारयति - ते |
वि + सृज् | विसृज्यते | विसर्जयति - ते |
सृ - सर् | स्रियते | सारयति - ते |
सृज् | सृज्यते | सर्जयति - ते |
वि + स्तृ | विस्तर्यते | विस्तारयति - ते |
आ + स्तृ | आस्तर्यते | आस्तारयति - ते |
नि + सृ | निस्रियते | नि:सारयति - ते |
अप + सृ | अपस्रियते | अपसारयति - ते |
सेव् | सेव्यते | सेवयति - ते |
स्वप् | सुप्यते | स्वापयति - ते |
स्था - तिष्ठ् | स्थीयते | स्थापयति - ते |
स्निह् | स्निह्यते | स्नेहयति - ते |
स्फुट् | स्फुट्यते | स्फोटयति - ते |
स्त्रु - स्त्रव् | स्त्रव्यते | स्रावयति - ते |
स्त्रंस् | स्त्रंस्यते | स्त्रंासयति - ते |
स्मृ | स्मर्यते | स्मारयति - ते |
स्मि - स्मय् | स्मीयते | स्माययति - ते |
स्पर्ध् | स्पर्ध्यते | स्पर्र्धयति - ते |
प्र + स्था | प्रस्थीयते | प्रस्थापयति - ते |
उद् + स्था | उत्स्थीयते | उत्थापयति - ते |
आ + स्था | आस्थीयते | आस्थापयति - ते |
अनु + स्था | अनुस्थीयते | अनुस्थापयति - ते |
स्खल् | स्खल्यते | स्खलयति - ते |
स्फुर् | स्फुर्यते | स्फारयति - ते |
स्पृश् | स्पृश्यते | स्पर्शयति - ते |
स्ना | स्नीयते | स्नापयति - ते |
प्र + स्तु | प्रस्तूयते | प्रस्तावयति - ते |
स्तु | स्तूयते | स्तावयति - ते |
स्पृह् | स्पृह्यते | स्पृहयति- ते |
स्तृ | स्तीर्यते | स्तारयति - ते |
स्वाद् | स्वाद्यते | स्वादयति - ते |
हस् | हस्यते | हासयति - ते |
वि + हस् | विहस्यते | विहासयति - ते |
अभि + हन् | अभिहन्यते | अभिघातयति- ते |
हन् | हन्यते | घातयति - ते |