श्रीसत्यनारायणाची आरती-
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श्रीसत्यनारायणस्य आरति:
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जय जय दीनदयाळा, सत्यनारायणदेवा,
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जय जय दीनदयालो, सत्यनारायणदेव,
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पंचारति ओवाळूं श्रीपति, तुज भक्तिभावा, ध्रु.
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पंचारतिं कुर्वे श्रीपते, भक्तिभावेन, ध्रु.
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विधियुक्त पूजुनी करिती, पुराण श्रवण,
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विधियुक्तपूजनं कृत्वा, पुराणश्रवणं,
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परिमळद्रव्यासहित, पुष्पमाळा अर्पून,
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परिमलद्रव्यसहितां पुष्पमालां समर्प्य,
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घृतयुक्त शर्करामिश्रित गोधूमचूर्ण,
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घृतयुक्तं, शर्करामिश्रितं, गोधूमचूर्णं,
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प्रसाद भक्षण करितां प्रसन्न, तू नारायण, 1.
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प्रसादरूपेण भक्षणं कृत्वा, प्रसीदसि देव, 1.
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शतानंदविप्रे पूर्वी, व्रत हे आचरिले,
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शतानन्दविप्रेण पूर्वमेतद्, व्रतम् आचरितम्,
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दरिद्र दवडुनी अंती त्याते, मोक्षपदा नेले,
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दारिद्र्यं दूरं कृत्वा स:, मोक्षपदं नीत:,
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त्यापासूनि हे व्रत कलियुगी, सकळा श्रुत झाले,
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तत: एतद् व्रतं कलौ, सर्वै: ज्ञातम्,
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भावार्थे पूजिता, सर्वा इच्छित लाधले, 2.
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भावेन पूजित्वा तै:, इच्छितं लब्धम् 2.
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साधुवैश्ये संततीसाठी तुजला प्रार्थियले,
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साधुवैश्येन सन्तत्यर्थं, तव प्रार्थना कृता,
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इच्छित पुरता, मदांध होउनी, व्रत न आचरिले,
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इच्छितं प्राप्य, मदान्धो भूत्वा, व्रतं विस्मृतम्,
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त्या पापाने संकटी पडुनी, दु:खहि भोगिले,
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तत्पापेन संकटे पतित्वा, दु:खं च सोढम्,
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स्मृति होउनी आचरिता व्रत, त्या तुवांचि उद्धरिले,3.
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स्मृतिं प्राप्य, व्रतकरणेन, स त्वया हि उद्धरित:, 3.
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प्रसाद विसरुनी, पति भेटीला, कलावती गेली,
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प्रसादं विस्मृत्य, पतिं मेलितुं, कलावती याता,
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क्षोभ तुझा होताचि तयाचि, नौका बुडाली,
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क्षुब्धे जाते त्वया पत्यु:, नौका निमज्जिता,
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अंगध्वजरायाची यापरि, दु:खस्थिति आली,
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अंगध्वजराजस्य तथैव, दु:खस्थिति: एता,
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मृतवार्ता शतपुत्रांची सत्वर, कर्णी पसरली, 4.
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मृतवार्ता शतपुत्राणां सत्वरं, राज्ये प्रसृता, 4.
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पुनरपि पूजुनी, प्रसाद ग्रहण करता तत्क्षणी,
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पुन: पूजनं, प्रसादग्रहणं, तत्क्षणम् आचरितम्,
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पतिची नौका तरली देखे, कलावती नयनीं,
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पतिनौकां तीर्णां पश्यति, कलावती मोदम्,
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अंगध्वजरायासी पुत्र, भेटती येउनी,
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अंगध्वजराजं पुत्रा:, मिलन्ति आगत्य,
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ऐसा भक्तां संकटी पावसी, तू चक्रपाणी, 5.
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एवं भक्तान् संकटे रक्षसि, हे चक्रपाणे, 5.
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अनन्यभावे पूजुनि हे व्रत, जे जन आचरती,
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अनन्यभावेन एतद् व्रतं, यो जन आचरति,
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इच्छित पुरविसी त्यांते देउनी, संतति संपत्ती,
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इच्छितं करोषि, तस्मै दत्वा, सन्ततिसम्पत्ती,
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संहरती भवदुरिते सर्वहि, बंधने तुटती,
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संहरसि भवदुरितं सर्वं, बन्धनं त्रोटयसि,
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राजा रंका समान मानुनी, पावसी श्रीपति, 6.
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राजारंकौ समौ मत्वा, / कृत्वा, प्रसीदसि देव, 6.
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ऐसा तव व्रतमहिमा अपार, वर्णू मी कैसा,
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एवं तव व्रतमहिमा अपार:, कथं वर्णयानि?
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भक्तिपुरस्सर आचरती त्यां, पावसि जगदीशा,
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भक्तिपुरस्सरम् आचरति, तस्मिन् प्रसन्नो भवसि,
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भक्तांचा कनवाळू, कल्पद्रुम तू सर्वेशा,
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भक्तानां कृपालु:, कल्पद्रुम: त्वमसि सर्वेषाम्,
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मोरेश्वरसुत वासुदेव, तुज विनवी भवनाशा, 7.
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मोरेश्वरसुतवासुदेवस्य, विनति: भवनाश, 7,
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श्रीमती सावरकर, नाशिकला संस्कृत स्तोत्रे व सूक्ते विनामूल्य शिकवतात. त्यांनी सुचवले की
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संस्कृतरूपांतर- दयाकर दाब्के, भोपालम् 15-10-14
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सत्यनारायणाच्या आरतीचे संस्कृतात रूपांतर करावे.
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