८. ३. १ मतुवसो रु सम्बुद्धौ छन्दसि |
८. ३. २ अत्रानुनासिकः पूर्वस्य तु वा |
८. ३. ३ आतोऽटि नित्यम् |
८. ३. ४ अनुनासिकात् परोऽनुस्वारः |
८. ३. ५ समः सुटि |
८. ३. ६ पुमः खय्यम्परे |
८. ३. ७ नश्छव्यप्रशान् |
८. ३. ८ उभयथर्क्षु |
८. ३. ९ दीर्घादटि समानपदे |
८. ३. १० नॄन् पे |
८. ३. ११ स्वतवान् पायौ |
८. ३. १२ कानाम्रेडिते |
८. ३. १३ ढो ढे लोपः |
८. ३. १४ रो रि |
८. ३. १५ खरवसानयोर्विसर्जनीयः |
८. ३. १६ रोः सुपि |
८. ३. १७ भोभगोऽघोऽपूर्वस्य योऽशि |
८. ३. १८ व्योर्लघुप्रयत्नतरः शाकटायनस्य |
८. ३. १९ लोपः शाकल्यस्य |
८. ३. २० ओतो गार्ग्यस्य |
८. ३. २१ उञि च पदे |
८. ३. २२ हलि सर्वेषाम् |
८. ३. २३ मोऽनुस्वारः |
८. ३. २४ नश्चापदान्तस्य झलि |
८. ३. २५ मो राजि समः क्वौ |
८. ३. २६ हे मपरे वा |
८. ३. २७ नपरे नः |
८. ३. २८ ङ्णोः कुक्टुक् शरि |
८. ३. २९ डः सि धुट् |
८. ३. ३० नश्च |
८. ३. ३१ शि तुक् |
८. ३. ३२ ङमो ह्रस्वादचि ङमुण्नित्यम् |
८. ३. ३३ मय उञो वो वा |
८. ३. ३४ विसर्जनीयस्य सः |
८. ३. ३५ शर्परे विसर्जनीयः |
८. ३. ३६ वा शरि |
८. ३. ३७ कुप्वोः XकXपौ च |
८. ३. ३८ सोऽपदादौ |
८. ३. ३९ इणः षः |
८. ३. ४० नमस्पुरसोर्गत्योः |
८. ३. ४१ इदुदुपधस्य चाप्रत्ययस्य |
८. ३. ४२ तिरसोऽन्यतरस्याम् |
८. ३. ४३ द्विस्त्रिश्चतुरिति कृत्वोऽर्थे |
८. ३. ४४ इसुसोः सामर्थ्ये |
८. ३. ४५ नित्यं समासेऽनुत्तरपदस्थस्य |
८. ३. ४६ अतः कृकमिकंसकुम्भपात्रकुशाकर्णीष्वनव्ययस्य |
८. ३. ४७ अधःशिरसी पदे |
८. ३. ४८ कस्कादिषु च |
८. ३. ४९ छन्दसि वाऽप्राम्रेडितयोः |
८. ३. ५० कःकरत्करतिकृधिकृतेष्वनदितेः |
८. ३. ५१ पञ्चम्याः परावध्यर्थे |
८. ३. ५२ पातौ च बहुलम् |
८. ३. ५३ षष्ठ्याः पतिपुत्रपृष्ठपारपदपयस्पोषेषु |
८. ३. ५४ इडाया वा |
८. ३. ५५ अपदान्तस्य मूर्धन्यः |
८. ३. ५६ सहेः साडः सः |
८. ३. ५७ इण्कोः |
८. ३. ५८ नुम्विसर्जनीयशर्व्यवायेऽपि |
८. ३. ५९ आदेशप्रत्यययोः |
८. ३. ६० शासिवसिघसीनां च |
८. ३. ६१ स्तौतिण्योरेव षण्यभ्यासात् |
८. ३. ६२ सः स्विदिस्वदिसहीनां च |
८. ३. ६३ प्राक्सितादड्व्यवायेऽपि |
८. ३. ६४ स्थाऽऽदिष्वभ्यासेन चाभ्यासय |
८. ३. ६५ उपसर्गात् सुनोतिसुवतिस्यतिस्तौतिस्तोभतिस्थासेनय-
सेधसिचसञ्जस्वञ्जाम् |
८. ३. ६६ सदिरप्रतेः |
८. ३. ६७ स्तम्भेः |
८. ३. ६८ अवाच्चालम्बनाविदूर्ययोः |
८. ३. ६९ वेश्च स्वनो भोजने |
८. ३. ७० परिनिविभ्यः सेवसितसयसिवुसहसुट्स्तुस्वञ्जाम् |
८. ३. ७१ सिवादीनां वाऽड्व्यवायेऽपि |
८. ३. ७२ अनुविपर्यभिनिभ्यः स्यन्दतेरप्राणिषु |
८. ३. ७३ वेः स्कन्देरनिष्ठायाम् |
८. ३. ७४ परेश्च |
८. ३. ७५ परिस्कन्दः प्राच्यभरतेषु |
८. ३. ७६ स्फुरतिस्फुलत्योर्निर्निविभ्यः |
८. ३. ७७ वेः स्कभ्नातेर्नित्यम् |
८. ३. ७८ इणः षीध्वंलुङ्लिटां धोऽङ्गात् |
८. ३. ७९ विभाषेटः |
८. ३. ८० समासेऽङ्गुलेः सङ्गः |
८. ३. ८१ भीरोः स्थानम् |
८. ३. ८२ अग्नेः स्तुत्स्तोमसोमाः |
८. ३. ८३ ज्योतिरायुषः स्तोमः |
८. ३. ८४ मातृपितृभ्यां स्वसा |
८. ३. ८५ मातुःपितुर्भ्यामन्यतरस्याम् |
८. ३. ८६ अभिनिसः स्तनः शब्दसंज्ञायाम् |
८. ३. ८७ उपसर्गप्रादुर्भ्यामस्तिर्यच्परः |
८. ३. ८८ सुविनिर्दुर्भ्यः सुपिसूतिसमाः |
८. ३. ८९ निनदीभ्यां स्नातेः कौशले |
८. ३. ९० सूत्रं प्रतिष्णातम् |
८. ३. ९१ कपिष्ठलो गोत्रे |
८. ३. ९२ प्रष्ठोऽग्रगामिनि |
८. ३. ९३ वृक्षासनयोर्विष्टरः |
८. ३. ९४ छन्दोनाम्नि च |
८. ३. ९५ गवियुधिभ्यां स्थिरः |
८. ३. ९६ विकुशमिपरिभ्यः स्थलम् |
८. ३. ९७ अम्बाम्बगोभूमिसव्यापद्वित्रिकुशेकुशङ्क्वङ्गुमञ्जि-
पुञ्जिपरमेबर्हिर्दिव्यग्निभ्यः स्थः |
८. ३. ९८ सुषामादिषु च |
८. ३. ९९ एति संज्ञायामगात् |
८. ३. १०० नक्षत्राद्वा |
८. ३. १०१ ह्रस्वात् तादौ तद्धिते |
८. ३. १०२ निसस्तपतावनासेवने |
८. ३. १०३ युष्मत्तत्ततक्षुःष्वन्तःपादम् |
८. ३. १०४ यजुष्येकेषाम् |
८. ३. १०५ स्तुतस्तोमयोश्छन्दसि |
८. ३. १०६ पूर्वपदात् |
८. ३. १०७ सुञः |
८. ३. १०८ सनोतेरनः |
८. ३. १०९ सहेः पृतनर्ताभ्यां च |
८. ३. ११० न रपरसृपिसृजिस्पृशिस्पृहिसवनादीनाम् |
८. ३. १११ सात्पदाद्योः |
८. ३. ११२ सिचो यङि |
८. ३. ११३ सेधतेर्गतौ |
८. ३. ११४ प्रतिस्तब्धनिस्तब्धौ च |
८. ३. ११५ सोढः |
८. ३. ११६ स्तम्भुसिवुसहां चङि |
८. ३. ११७ सुनोतेः स्यसनोः |
८. ३. ११८ सदिष्वञ्जोः परस्य लिटि |
८. ३. ११९ निव्यभिभ्योऽड्व्यावये वा छन्दसि |

Hits: 408
X

Right Click

No right click