७. ४. १ णौ चङ्युपधाया ह्रस्वः |
७. ४. २ नाग्लोपिशास्वृदिताम् |
७. ४. ३ भ्राजभासभाषदीपजीवमीलपीडामन्यतरस्याम् |
७. ४. ४ लोपः पिबतेरीच्चाभ्यासस्य |
७. ४. ५ तिष्ठतेरित् |
७. ४. ६ जिघ्रतेर्वा |
७. ४. ७ उरृत् |
७. ४. ८ नित्यं छन्दसि |
७. ४. ९ दयतेर्दिगि लिटि |
७. ४. १० ऋतश्च संयोगादेर्गुणः |
७. ४. ११ ऋच्छत्यॄताम् |
७. ४. १२ शृदॄप्रां ह्रस्वो वा |
७. ४. १३ केऽणः |
७. ४. १४ न कपि |
७. ४. १५ आपोऽन्यतरस्याम् |
७. ४. १६ ऋदृशोऽङि गुणः |
७. ४. १७ अस्यतेस्थुक् |
७. ४. १८ श्वयतेरः |
७. ४. १९ पतः पुम् |
७. ४. २० वच उम् |
७. ४. २१ शीङः सार्वधातुके गुणः |
७. ४. २२ अयङ् यि क्ङिति |
७. ४. २३ उपसर्गाद्ध्रस्व ऊहतेः |
७. ४. २४ एतेर्लिङि |
७. ४. २५ अकृत्सार्वधातुकयोर्दीर्घः |
७. ४. २६ च्वौ च |
७. ४. २७ रीङ् ऋतः |
७. ४. २८ रिङ् शयग्लिङ्क्षु |
७. ४. २९ गुणोऽर्तिसंयोगाद्योः |
७. ४. ३० यङि च |
७. ४. ३१ ई घ्राध्मोः |
७. ४. ३२ अस्य च्वौ |
७. ४. ३३ क्यचि च |
७. ४. ३४ अशनायोदन्यधनाया बुभुक्षापिपासागर्द्धेषु |
७. ४. ३५ न च्छन्दस्यपुत्रस्य |
७. ४. ३६ दुरस्युर्द्रविणस्युर्वृषण्यतिरिषण्यति |
७. ४. ३७ अश्वाघस्यात् |
७. ४. ३८ देवसुम्नयोर्यजुषि काठके |
७. ४. ३९ कव्यध्वरपृतनस्यर्चि लोपः |
७. ४. ४० द्यतिस्यतिमास्थामित्ति किति |
७. ४. ४१ शाछोरन्यतरस्याम् |
७. ४. ४२ दधातेर्हिः |
७. ४. ४३ जहातेश्च क्त्वि |
७. ४. ४४ विभाषा छन्दसि |
७. ४. ४५ सुधितवसुधितनेमधितधिष्वधिषीय च |
७. ४. ४६ दो दद् घोः |
७. ४. ४७ अच उपसर्गात्तः |
७. ४. ४८ अपो भि |
७. ४. ४९ सः स्यार्द्धधातुके |
७. ४. ५० तासस्त्योर्लोपः |
७. ४. ५१ रि च |
७. ४. ५२ ह एति |
७. ४. ५३ यीवर्णयोर्दीधीवेव्योः |
७. ४. ५४ सनि मीमाघुरभलभशकपतपदामच इस् |
७. ४. ५५ आप्ज्ञप्यृधामीत् |
७. ४. ५६ दम्भ इच्च |
७. ४. ५७ मुचोऽकर्मकस्य गुणो वा |
७. ४. ५८ अत्र लोपोऽभ्यासस्य |
७. ४. ५९ ह्रस्वः |
७. ४. ६० हलादिः शेषः |
७. ४. ६१ शर्पूर्वाः खयः |
७. ४. ६२ कुहोश्चुः |
७. ४. ६३ न कवतेर्यङि |
७. ४. ६४ कृषेश्छन्दसि |
७. ४. ६५
दाधर्तिदर्धर्तिदर्धर्षिबोभूतुतेतिक्तेऽलर्ष्यापनीफणत्-
संसनिष्यदत्करिक्रत्कनिक्रदद्भरिभ्रद्दविध्वतोदविद्युतत्-
तरित्रतःसरीसृपतंवरीवृजन्मर्मृज्यागनीगन्तीति च |
७. ४. ६६ उरत् |
७. ४. ६७ द्युतिस्वाप्योः सम्प्रसारणम् |
७. ४. ६८ व्यथो लिटि |
७. ४. ६९ दीर्घ इणः किति |
७. ४. ७० अतः आदेः |
७. ४. ७१ तस्मान्नुड् द्विहलः |
७. ४. ७२ अश्नोतेश्च |
७. ४. ७३ भवतेरः |
७. ४. ७४ ससूवेति निगमे |
७. ४. ७५ निजां त्रयाणां गुणः श्लौ |
७. ४. ७६ भृञामित् |
७. ४. ७७ अर्तिपिपर्त्योश्च |
७. ४. ७८ बहुलं छन्दसि |
७. ४. ७९ सन्यतः |
७. ४. ८० ओः पुयण्ज्यपरे |
७. ४. ८१ स्रवतिशृणोतिद्रवतिप्रवतिप्लवतिच्यवतीनां वा |
७. ४. ८२ गुणो यङ्लुकोः |
७. ४. ८३ दीर्घोऽकितः |
७. ४. ८४ नीग्वञ्चुस्रंसुध्वंसुभ्रंसुकसपतपदस्कन्दाम् |
७. ४. ८५ नुगतोऽनुनासिकान्तस्य |
७. ४. ८६ जपजभदहदशभञ्जपशां च |
७. ४. ८७ चरफलोश्च |
७. ४. ८८ उत् परस्यातः |
७. ४. ८९ ति च |
७. ४. ९० रीगृदुपधस्य च |
७. ४. ९१ रुग्रिकौ च लुकि |
७. ४. ९२ ऋतश्च |
७. ४. ९३ सन्वल्लघुनि चङ्परेऽनग्लोपे |
७. ४. ९४ दीर्घो लघोः |
७. ४. ९५ अत् स्मृदृत्वरप्रथम्रदस्तॄस्पशाम् |
७. ४. ९६ विभाषा वेष्टिचेष्ट्योः |
७. ४. ९७ ई च गणः |