६. ४. ८१ इणो यण् |
६. ४. ८२ एरनेकाचोऽसंयोगपूर्वस्य |
६. ४. ८३ ओः सुपि |
६. ४. ८४ वर्षाभ्वश्च |
६. ४. ८५ न भूसुधियोः |
६. ४. ८६ छन्दस्युभयथा |
६. ४. ८७ हुश्नुवोः सार्वधातुके |
६. ४. ८८ भुवो वुग्लुङ्लिटोः |
६. ४. ८९ ऊदुपधाया गोहः |
६. ४. ९० दोषो णौ |
६. ४. ९१ वा चित्तविरागे |
६. ४. ९२ मितां ह्रस्वः |
६. ४. ९३ चिण्णमुलोर्दीर्घोऽन्यतरस्याम् |
६. ४. ९४ खचि ह्रस्वः |
६. ४. ९५ ह्लादो निष्ठायाम् |
६. ४. ९६ छादेर्घेऽद्व्युपसर्गस्य |
६. ४. ९७ इस्मन्त्रन्क्विषु च |
६. ४. ९८ गमहनजनखनघसां लोपः क्ङित्यनङि |
६. ४. ९९ तनिपत्योश्छन्दसि |
६. ४. १०० घसिभसोर्हलि च |
६. ४. १०१ हुझल्भ्यो हेर्धिः |
६. ४. १०२ श्रुशृणुपॄकृवृभ्यश्छन्दसि |
६. ४. १०३ अङितश्च |
६. ४. १०४ चिणो लुक् |
६. ४. १०५ अतो हेः |
६. ४. १०६ उतश्च प्रत्ययादसंयोगपूर्वात् |
६. ४. १०७ लोपश्चास्यान्यतरस्यां म्वोः |
६. ४. १०८ नित्यं करोतेः |
६. ४. १०९ ये च |
६. ४. ११० अत उत् सार्वधातुके |
६. ४. १११ श्नसोरल्लोपः |
६. ४. ११२ श्नाऽभ्यस्तयोरातः |
६. ४. ११३ ई हल्यघोः |
६. ४. ११४ इद्दरिद्रस्य |
६. ४. ११५ भियोऽन्यतरस्याम् |
६. ४. ११६ जहातेश्च |
६. ४. ११७ आ च हौ |
६. ४. ११८ लोपो यि |
६. ४. ११९ घ्वसोरेद्धावभ्यासलोपश्च |
६. ४. १२० अत एकहल्मध्येऽनादेशादेर्लिटि |
६. ४. १२१ थलि च सेटि |
६. ४. १२२ तॄफलभजत्रपश्च |
६. ४. १२३ राधो हिंसायाम् |
६. ४. १२४ वा जॄभ्रमुत्रसाम् |
६. ४. १२५ फणां च सप्तानाम् |
६. ४. १२६ न शसददवादिगुणानाम् |
६. ४. १२७ अर्वणस्त्रसावनञः |
६. ४. १२८ मघवा बहुलम् |
६. ४. १२९ भस्य |
६. ४. १३० पादः पत् |
६. ४. १३१ वसोः सम्प्रसारणम् |
६. ४. १३२ वाह ऊठ् |
६. ४. १३३ श्वयुवमघोनामतद्धिते |
६. ४. १३४ अल्लोपोऽनः |
६. ४. १३५ षपूर्वहन्धृतराज्ञामणि |
६. ४. १३६ विभाषा ङिश्योः |
६. ४. १३७ न संयोगाद्वमान्तात् |
६. ४. १३८ अचः |
६. ४. १३९ उद ईत् |
६. ४. १४० आतो धातोः |
६. ४. १४१ मन्त्रेष्वाङ्यादेरात्मनः |
६. ४. १४२ ति विंशतेर्डिति |
६. ४. १४३ टेः |
६. ४. १४४ नस्तद्धिते |
६. ४. १४५ अह्नष्टखोरेव |
६. ४. १४६ ओर्गुणः |
६. ४. १४७ ढे लोपोऽकद्र्वाः |
६. ४. १४८ यस्येति च |
६. ४. १४९ सूर्यतिष्यागस्त्यमत्स्यानां य उपधायाः |
६. ४. १५० हलस्तद्धितस्य |
६. ४. १५१ आपत्यस्य च तद्धितेऽनाति |
६. ४. १५२ क्यच्व्योश्च |
६. ४. १५३ बिल्वकादिभ्यश्छस्य लुक् |
६. ४. १५४ तुरिष्ठेमेयस्सु |
६. ४. १५५ टेः |
६. ४. १५६ स्थूलदूरयुवह्रस्वक्षिप्रक्षुद्राणां यणादिपरं पूर्वस्य
च गुणः |
६. ४. १५७ प्रियस्थिरस्फिरोरुबहुलगुरुवृद्धतृप्रदीर्घ-
वृन्दारकाणां प्रस्थस्फवर्बंहिगर्वर्षित्रब्द्राघिवृन्दाः |
६. ४. १५८ बहोर्लोपो भू च बहोः |
६. ४. १५९ इष्ठस्य यिट् च |
६. ४. १६० ज्यादादीयसः |
६. ४. १६१ र ऋतो हलादेर्लघोः |
६. ४. १६२ विभाषर्जोश्छन्दसि |
६. ४. १६३ प्रकृत्यैकाच् |
६. ४. १६४ इनण्यनपत्ये |
६. ४. १६५ गाथिविदथिकेशिगणिपणिनश्च |
६. ४. १६६ संयोगादिश्च |
६. ४. १६७ अन् |
६. ४. १६८ ये चाभावकर्मणोः |
६. ४. १६९ आत्माध्वानौ खे |
६. ४. १७० न मपूर्वोऽपत्येऽवर्मणः |
६. ४. १७१ ब्राह्मोअजातौ |
६. ४. १७२ कार्मस्ताच्छील्ये |
६. ४. १७३ औक्षमनपत्ये |
६. ४. १७४ दाण्डिनायनहास्तिनायनाथर्वणिकजैह्माशिनेय-
वाशिनायनिभ्रौणहत्यधैवत्यसारवैक्ष्वाकमैत्रेयहिरण्मयानि |
६. ४. १७५ ऋत्व्यवास्त्व्यवास्त्वमाध्वीहिरण्ययानि च्छन्दसि |